मंगल पांडे बलिदान दिवस 2024 (8 April – Mangal Pandey Martyrs Day)

Mangal Pandey Martyrs Day 2024: भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी योद्धा मंगल पांडे का बलिदान दिवस हर साल 8 अप्रैल को मनाया जाता है। वे सन् 1857 विद्रोह के पहले शहीद थे

Mangal Panday Martyrs Day 2024: मंगल पांडे बलिदान दिवस कब मनाया जाता है? जीवन परिचय

सन् 1857 में भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ाद कराने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह की पहली ज्वाला भड़काने वाले महान क्रांतिकारी मंगल पांडे की पूण्यतिथि हर साल 8 अप्रैल को मनाई जाती है, उन्हें इसी दिन वर्ष 1857 में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा फांसी दे दी गयी थी। इस साल 2024 में उनकी 167वीं पूण्यतिथि है।

भारतीय स्वतंत्रता के पहले व्यापक संग्राम की शुरूआत 29 मार्च, 1857 को भारतीय सिपाही मंगल पांडेय के ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला करने से हुई, जिसके बाद उन्होंने अपनी शहादत दे दी, वे इस विद्रोह के पहले शहीद थे।

Mangal Panday History and Biography in Hindi
Mangal Panday History and Biography in Hindi

 

मंगल पांडे बलिदान/शहीदी दिवस (Mangal Pandey Death Anniversary)

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी योद्धा मंगल पांडे का बलिदान दिवस हर साल 8 अप्रैल को मनाया जाता है, उन्होंने भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम (1857 की क्रांति) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैण्ट्री की 34वें रेजीमेंट में पैदल सेना के 1446वें नंबर के सिपाही थे।

उनके द्वारा भड़काई गयी 1857 की क्रांति की आग ऐसी धधकी कि इसके 100 साल बाद ही भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद करा लिया गया। उनकी पुण्यतिथि को हमें उन्हें याद करते हुए, उनकी प्रतिमा पर हार चढ़ाकर, और नमन कर, श्रधांजलि अर्पित करते हुए मनाया जाना चाहिए।

 

मंगल पांडे का जीवन परिचय (Mangal Pandey Biography in Hindi)

भारत में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में एक “भूमिहार ब्राह्मण” परिवार में 19 जुलाई 1827 को मंगल पांडे का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और उनकी माता जी का नाम अभय रानी था।

इतिहास में कई जगह उनका जन्म स्थान फैजाबाद के सुरूरपुर गांव उल्लेखित है। जमीदार परिवार से होने के बाद भी उन्होंने मात्र 18-22 साल की उम्र में ही ब्रिटिश आर्मी ज्वाइन कर ली।

उन्होंने कहा था:

यह आजादी की लड़ाई है….
गुजरे हुए कल से आजादी……
आने वाले कल के लिए….


मंगल पाण्डेय द्वारा सन् 1857 की क्रांति के दौरान आजादी के लिए एक ऐसा विद्रोह देखने को मिला जिसने सम्पूर्ण भारत में क्रांति की ज्वाला भड़काई। अंग्रेजी हुकुमत के ख़िलाफ़ बगावत करने के कारण उन्हें अंग्रेजों द्वारा गद्दार और विद्रोही कहा गया, परन्तु हर भारतीय के लिए आज भी वे एक महान नायक (Hero) हैं।

भारत में ब्रिटिश हुकूमत से आजादी की चिंगारी जलाने वाले क्रांतिवीर मंगल पांडे जी को 08 अप्रैल 1857 को अंग्रेजों द्वारा फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया था। उनकी पुण्यतिथि को देश बलिदान दिवस के रूप में हर साल मनाता है।

 

 

1857 का विद्रोह क्यों हुआ था? (History of 1857 Revolt in Hindi)

1857 का विद्रोह बंदूक में लगने वाली कारतूस के कारण हुआ, उस समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में सिपाहियों को एनफील्ड पी-53 राइफल दी गयी थी जिसमें गोली भरने के लिए कारतूस को दांत से काटकर खोलना पड़ता था। इस कारतूस का बाहरी आवरण चर्बी का बना होता था जिससे कारतूस पानी के सीलन से बचा रहता था।

ब्रिटिश इंडियन आर्मी में ज्यादातर भारतीय सैनिक हिंदू और मुसलमान थे जब उन्हें यह पता चला कि कारतूस पर लगी चर्बी गाय और सुअर के मांस से बनी हुई है, तो सैनिकों में विद्रोह फैल गया। क्योंकि जहाँ गाय हिंदुओं की पवित्र पशु थी और सूअर से मुसलमान घृणा करते थे।

उस समय मंगल पांडे बैरकपुर की 34वी रेजीमेंट बटालियन में सिपाही के तौर पर तैनात थे, जहाँ यह जानकारी उन्हें वहां के पानी पिलाने वाले एक हिंदू सैनिक से मिली थी। जिसके बाद उन्होंने सभी सिपाहियों को भी समझाया कि अंग्रेज उनका धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं, ऐसे में उन्हें ब्रिटिश इंडियन आर्मी को छोड़ देना चाहिए।

 

मंगल पांडेय का विद्रोह और उनकी गिरफ्तारी

29 मार्च 1857 को बंगाल के बैरकपुर छावनी में 34वीं रेजीमेंट बटालियन के सिपाही मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया, उन्हें पकड़ने के लिए मेजर ह्यूजेसन ने लेफ्टिनेंट बाग और कुछ सैनिकों को भेजा, उनके जोर जबरदस्ती करने पर मंगल पांडे ने उन पर हमला कर दिया और आगे बढ़ते हुए ‘मारो फिरंगियों को’ का नारा दिया और मेजर ह्यूजेसन पर गोली चला दी।

इस दौरान ईश्वरी प्रसाद से उन्हें गिरफ्तार करने के लिए कहा गया, परंतु उन्होंने और कई अन्य भारतीय सिपाहियों ने ऐसा करने से मना कर दिया था। इसके बाद जब अंग्रेजी सैनिक उन्हें गिरफ्तार करने आए तब उन्होंने खुद को ही अपनी बंदूक से निशाना लगाया और पैर के अंगूठे से ट्रिगर दबाया, जिसमें उनके कपड़े जल गए। जहाँ से उन्हें गिरफ्तार करके उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया।

 

मंगल पाण्डेय को मिली मौत की सज़ा?

न्यायालय द्वारा 18 अप्रैल का दिन उनकी फांसी के लिए निर्धारित किया गया, परंतु अंग्रेजों ने विद्रोह भड़कने के डर से मंगल पांडे को 08 अप्रैल 1857 के दिन ही फांसी देने को कहा, उस समय उनकी उम्र 30 वर्ष से कम थी। हालंकि बैरकपुर छावनी का कोई भी जल्लाद उनके पवित्र खून से अपने हाथ नहीं रंगना चाहता था, इसीलिए उनको फांसी देने के लिए जल्लाद कोलकाता से बुलाए गए थे।

उनके बाद ईश्वरी प्रसाद को आज्ञा का पालन ना करने के जुर्म में फांसी दे दी गई जिससे अंग्रेजों को यह लगा कि अब वह लोग उन्हीं से भय खाएंगे, परंतु परिणाम इससे उल्टा हुआ लोगों के बीच अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ विद्रोह और बढ़ गया।

 

 

मंगल पांडे को क्यों दी गई फांसी?

29 मार्च 1857 को, 34वीं रेजीमेंट बटालियन के एक भारतीय सिपाही मंगल पांडे ने कलकत्ता के पास बैरकपुर में दो ब्रिटिश अधिकारियों – ह्यूजेसन और बाऊ को मार दिया था। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, और 08 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई। उनके इस व्यवहार का मुख्य कारण एनफील्ड पी-53 राइफल में इस्तेमाल किए गए एक नए प्रकार के बुलेट कारतूस थे, जिसमें गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग किया गया था।

 

मंगल पांडे ने 1857 के विद्रोह में क्या भूमिका निभाई?

मंगल पांडे सन् 1857 विद्रोह के मुख्य नायक थे उन्होंने ही सर्वप्रथम अंग्रेजों का विरोध किया और भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुलकर खड़े होने की प्रेरणा भी दी। उन्हें फाँसी दिए जाने के बाद लोगों के भीतर अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी।

उस समय तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई और कई दूसरे स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे, ऐसे में देश भर में यह चिंगारी आग बनकर उभरी और 100 साल के भीतर ही अंग्रेजों को भारत से खदेड़ दिया गया।