Guru Gobind Singh Birthday 2021: गुरु गोबिंद सिंह जयंती और बायोग्राफी (जीवन परिचय और Quotes)
Guru Gobind Singh Birthday 2021: इस साल 2021 में सिक्खों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी की 354वी जयंती (गुरपूरब) 20 जनवरी 2021, को बुधवार के दिन मनाई जा रही है।
गुरु गोबिंद सिंह की जयंती का सिख समुदाय सहित दूसरे धर्मों में भी विशेष महत्व है वैसे तो गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था परंतु उनके जन्मदिन (बर्थडे) को दिसंबर या जनवरी महीने में कभी कभी दोनों में मनाया जाता है।
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गुरु गोबिंद सिंह Jayanti 2021 Gurpurab |
गुरु गोबिंद सिंह जयंती (गुरपूरब) | Guru Gobind Singh Birthday
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था परंतु हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार आपका जन्म पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को 1723 विक्रमी संवत में हुआ वहीं सिख कैलेंडर नानकशाही के अनुसार 23 पोह की तारीख गुरु गोबिंद सिंह जी की जन्म तिथि है। इसी तिथि को प्रत्येक वर्ष गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती (गुरपूरब) मनाया जाता है।
Guru Gobind Singh Birthday (Gurpurab) को सिख समुदाय में काफी धूमधाम से मनाया जाता है, इस खास अवसर पर गुरुद्वारों में कीर्तन और सुबह-सवेरे प्रभात फेरीयों का आयोजन किया जाता है।
साथ ही इस दिन लंगर आदि का भी लगाएं जाते हैं और खालसा पंथ की झांकियां निकाली जाती हैं, तथा गुरुद्वारों में सेवा और घरों में कीर्तन भी करवाए जाते हैं।
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Guru Gobind Singh Ji Quotes in Hindi |
गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी (Guru Gobind Singh Biography)
गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र थे, उनके बचपन का नाम गोबिंद राय था, वे बाद में सिखों के दसवें और आखिरी गुरु बने।
उन्होंने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को भी पूरा किया इसके साथ ही वे एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता भी थे।
जब गोबिंद सिंह जी 9 साल के थे तब इस्लाम ना स्वीकारने पर औरंगजेब ने उनके पिता और सिक्खों के नौवें गुरु श्री गुरू तेग बहादुर जी का सिर कटवा दिया था।
श्री गुरु तेघ बहादुर जी के बलिदान के बाद 11 नवम्बर 1675 को मात्र 9 वर्ष की आयु में वे सिक्खों के दसवें गुरू बने।
आरंभिक जीवन:
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर 1666 को पटना (बिहार) में सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के यहां हुआ, उन्हें बचपन में गोबिंद राय के नाम से जाना जाता था। उनके जन्म स्थान को अब 'तख्त श्री पटना साहिब' नाम से जाना जाता है।
वर्ष 1670 में उनका परिवार पंजाब वापस आ गया और उनकी आरंभिक शिक्षा की शुरुआत वर्ष 1672 में हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी (अब आनंदपुर साहिब) नामक स्थान से हुई।
यहां इन्होंने संस्कृत के साथ ही फारसी और अरबी की शिक्षा भी ग्रहण की तथा शस्त्रों का ज्ञान और सैनिक कौशल, तीरंदाजी एवं मार्शल आर्ट्स भी सीखा।
गुरु गोबिंद सिंह जी की कितनी पत्नी और बच्चे थे?
गुरू गोविंद सिंह जी की तीन पत्नियां माता जीतो, माता सुंदरी और माता साहिब देवान थी तथा जुझार सिंह, फ़तेह सिंह, जोरावर सिंह और अजित सिंह उनके चार पुत्र थे।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन काल में तीन शादियां की उनका पहला विवाह 10 साल की उम्र में 21 जून 1677 को माता जीतो के साथ सम्पन्न हुआ, जिनसे इन्हें 3 पुत्र प्राप्त हुए।
इन तीनों पुत्रों के नाम साहिबजादें जुझार सिंह, साहिबजादे जोरावर सिंह और साहिबजादे फतेह सिंह था।
दूसरा विवाह 4 अप्रैल 1684 को 17 वर्ष की आयु में माता सुंदरी से हुआ, माता सुंदरी से इन्हें 1 पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम अजीत सिंह था, जिसके बाद उनका तीसरा और अंतिम विवाह 15 अप्रैल 1700 को अपनी 33 वर्ष की आयु में माता साहिब देवन से हुआ, परन्तु इनसे कोई संतान प्राप्त नहीं हुई।
खालसा पंथ की स्थापना कब और किसने की?
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना 1699 ई. में बैसाखी के दिन गरीबों पर अन्याय और अत्याचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने एवं मानवता की रक्षा के लिए तत्पर रहने वाले योद्धाओं की एक मजबूत सेना बनाने के मकसद से की।
ख़ालसा का मतलब है मन, कर्म और वचन से शुद्ध।
आनंदपुर में सिखों की एक सभा के दौरान उन्होंने स्वयंसेवकों से पूछा गुरू के लिए अपने सिर का बलिदान कौन देना चाहता है? इस पर एक स्वयंसेवक सामने आया तो गुरु जी उसे पास ही के एक तंबू में ले गए और कुछ देर बाद खून से लथपथ तलवार के साथ बाहर आए।
उन्होंने फिर वही प्रश्न दोहराया और एक और स्वयंसेवक स्वेछा से उनके साथ तंबू में चला गया और गुरू जी खून से सनी तलवार के साथ बाहर आए।
इसी तरह वे कुल 5 स्वयंसेवक को बलिदान के लिए तंबू में ले गए परन्तु अंत में गुरु गोबिंद सिंह जी उन सभी स्वयंसेवकों को एक साथ जीवित बाहर लेकर आए और उन्होंने इन्हें 'पंज प्यारे' कहा और इसे 'पहले खालसा' का नाम दिया।
इसके बाद गुरू जी ने इन पांचों स्वयंसेवकों को अमृत दिया एवं खुद भी अमृत ग्रहण किया। उन्होंने अपनी सेना को सिंह (शेर) तथा खुद को छठा खालसा घोषित किया और अपना नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह कर दिया।
इसके साथ ही उन्होंने खालसा वाणी स्थापित की और “वाहेगुरुजी का खालसा, वाहेगुरुजी की फ़तेह” का नारा दिया।
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Waheguru ji da khalsa vaheguru ji di fateh |
ख़ालसा के 5 ककार
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा सिखों को 'क' शब्द से शुरू होने वाले पांच चीजों (जिन्हें ककार कहा जाता है) को हमेशा धारण करने को अनिवार्य बताया है जो है:- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा तथा इनके बिना खालसा अधूरा माना जाता है।
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गुरु गोबिंद सिंह द्वारा लड़ें गए ऐतिहासिक युद्ध
गुरू गोबिंद सिंह जी ने मुगलों या उनके सहयोगियों के साथ 14 युद्ध लड़े। धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने समस्त परिवार का बलिदान दे दिया इसलिए उन्हें "सर्वस्वदानी" भी कहा जाता है। इसके अलावा उन्हें बाजावाले, कलगीधर और दशमेश आदि नामों से ही जाना जाता है।
गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा किए गए महत्वपूर्ण युद्ध में से 1704 ईस्वी में हुआ चमकौर का युद्ध (Battle of Chamkaur) काफी खास माना जाता है।
बताया जाता है कि यह युद्ध गुरु जी ने मुगलों की 10 लाख सेना से अपने मात्र 42 सिख लड़ाकू सैनिकों के साथ लड़ा, इस भयंकर युद्ध में उनके दो बेटे जुझार सिंह और अजीत सिंह जी शहीद हो गए।
परंतु चमकौर का यह युद्ध मुगल हार गए और इन 42 सूरमाओं की जीत हुई तब गोबिंद सिंह जी ने कहा:
“चिड़ियों से मैं बाज लडाऊं , गीदड़ों को मैं शेर बनाऊ।”
“सवा लाख से एक लडाऊं तबै गोबिंद सिंह नाम कहाऊं!!”
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chidiyo se mai baaz ladau |
इसी बीच उनकी माता (गुजरी) का भी निधन हो गया और 27 दिसंबर 1704 को मुगलों ने उनके दो अन्य बेटों (साहिबजादों) जोरावर सिंह व फतेह सिंहजी को दीवार में चुनवा दिया।
8 मई 1705 में मुक्तसर में गुरुजी और मुगलों के बीच हुए भयानक युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह जी की विजय हुई।
इसके अलावा उन्होंने:
- 1688 में भंगानी का युद्ध,
- 1691 में नंदौर का युद्ध,
- 1696 में गुलेर का युद्ध,
- 1700 आनंदपुर का प्रथम युद्ध,
- 1702 में निर्मोहगढ़ और बसोली का युद्ध,
- 1704 में चमकौर युद्ध, आनंदपुर का दूसरा युद्ध और सरसा का युद्ध तथा
- 1705 में मुक्तसर का युद्ध लड़ा।
यह उनके कुछ महत्वपूर्ण युद्ध है जिनमें उन्होंने अपनी बहादुर सेना के सैनिकों एवं अपने परिवारजनों को भी खो दिया।
गुरु नानक देव जी की मृत्यु कब और कैसे हुई?
अक्टूबर 1707 में जब गुरुजी दक्षिण की ओर गए तो औरंगजेब की मृत्यु की खबर मिली। औरंगजेब की मौत के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी ने बहादुरशाह को बादशाह की गद्दी पर विराजमान करने में काफी सहायता की। दोनों के आपसी संबंधों को देखते हुए नवाब वाजिद खां घबरा गया।
इसके फलस्वरूप उसने सिखों के दसवें गुरु के पीछे अपने पठान छोड़ दिए, अंततः 7 अक्टूबर 1708 को इन पठानों ने धोखे से वार कर उनकी हत्या कर दी और वे महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए।
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Guru Gobind Singh ji Quotes in Hindi |
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गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद सिखों का नेतृत्व किसने किया?
गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु की परम्परा समाप्त कर सिक्खों के पवित्र ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया और इसे ही सिखों को अपना गुरु मानने को कहा और खुद भी मत्था टेका, वे सिक्खों के 10वें और अंतिम गुरू थे।
गुरु गोबिंद सिंह की मृत्यु के बाद सिखों का नेतृत्व उनके विश्वसनीय शिष्य 'बंदा बहादुर' ने किया।
बंदा बहादुर का जन्म 27 अक्टूबर 1670 को 'लक्ष्मण देव' के रूप में हुआ, वे एक सिख सैन्य कमांडर थे और उन्होंने गुरू गोविन्द सिंह जी के नेतृत्व में मुगलों के खिलाफ कई युद्ध लड़ें तथा एक सिख राज्य की स्थापना भी की।
गुरु गोविंद सिंह जी के समय दिल्ली में किस मुगल शासक का शासन था?
गुरु गोविंद सिंह जी के समय दिल्ली में मुगल शासक औरंगजेब का शासन था परंतु 1707 ईस्वी में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उन्होंने 'बहादुर शाह' को सम्राट बनाने में मदद की।
गुरु गोबिंद सिंह जी की प्रमुख रचनाएं
गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने जीवन में कई रचनाएं एवं कविताएं लिखी उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं में 'अकाल उस्तत', 'शास्त्र नाम माला', 'खालसा महिमा', 'चंडी दी वार', 'ज़फ़रनामा' (दसम ग्रंथ का एक भाग), 'जाप' साहिब, 'खालसा महिमा' जैसी रचनाएं शामिल हैं।
बिचित्र नाटक उनकी आत्मकथा मानी जाती है यह दसम ग्रंथ का एक भाग है तथा दसम ग्रंथ गुरु गोविंद सिंह की कृतियों का संकलन है।
गुरु गोबिंद सिंह जी के अनमोल विचार (Guru Gobind Singh Quotes)
इंसानों से प्रेम करना ही ईश्वर की सच्ची भक्ति है।
अज्ञानी व्यक्ति एक अंधे के समान होता है, जिसे मूल्यवान चीजों की कदर नहीं होती।
असहाय लोगों पर अपनी तलवार या शाक्ति का प्रदर्शन कभी नहीं करना चाहिए। वरना विधाता तुम्हारा खून स्वयं बहाएगा।
जब बाकी सभी तरीके विफल हो जाएं, तो हाथ में तलवार उठाना सही है।
अगर आप केवल भविष्य के बारे में सोचते रहेंगे तो वर्तमान भी खो देंगे।
भगवान के नाम के अलावा मनुष्य का कोई मित्र नहीं है और भगवान के सेवक इसी का चिंतन करते हैं।
ईश्वर ने मनुष्य को जन्म ही इसलिए दिया है, ताकि हम संसार में अच्छे काम करें और बुराई को दूर करें।
बिना गुरु के किसी को भगवान का नाम नहीं मिला है।
वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह
सवा लाख से एक लड़ाऊँ, चिड़ियों से मैं बाज तुड़ाऊँ तबे गोबिंद सिंह नाम कहाऊँ।
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Guru Gobind Singh Thoughts Photos |
गुरु गोबिंद सिंह जी अपने मानवीय जन्म को ईश्वर द्वारा अच्छे कर्मों को करने और बुरे कर्मों को दूर करने के लिए बताया है। वे ऐसे लोगों को खासा पसंद किया करते थे जो केवल सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले हैं।