गोवा मुक्ति आंदोलन: लम्बे संघर्ष और ऑपरेशन विजय के बाद मिली पुर्तगालियों से आज़ादी

Goa Liberation Movement: गोवा मुक्ति संग्राम (ऑपरेशन विजय, राजाभाऊ महाकाल और लोहिया जी के योगदान)

Goa Mukti Andolan in Hindi: पुर्तगालियों ने गोआ पर सबसे ज्यादा समय (लगभग 450 वर्षों) तक शासन किया, यहाँ तक की भारत की ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के 14 साल बाद भी वे इसे छोड़कर जाने को राज़ी नहीं थे। जिसके बाद गोवा मुक्ति आंदोलन चलाकर इन्हें यहाँ से खदेड़ा गया। हालंकि यह इतना आसान नहीं था इसके लिए राममनोहर लोहिया, राजाभाऊ महाकाल और मधु लिमये जैसे तमाम देश भक्तों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

लम्बे समय तक चले गोआ मुक्ति संग्राम के बाद भारतीय सशस्त्र सेना के ऑपरेशन विजय अभियान के तहत 19 दिसंबर 1961 को गोवा पर सैन्य कार्यवाही कर इसे पुर्तगालियों से आजाद कराया गया। यह दिन आज गोवा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है।

Goa Mukti Andolan
Goa Mukti Andolan

भारत के पश्चिमी तट पर स्थित गोवा भारत का सबसे छोटा राज्य है, हालंकि समुद्री तट के किनारे बसे होने के कारण इसका व्यापारिक महत्व बहुत ज्यादा है। यही कारण है की इसने पुराने समय से ही देश-विदेश के व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित किया, जिसमें मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश के आलावा पुर्तगाली भी शामिल थे। आइए आपको गोवा मुक्ति आंदोलन (ગોવા મુક્તિ આંદોલન) के बारे में बताने से पहले गोवा का इतिहास (History of Goa in Hindi) समझाते है।

 

गोवा का पुर्तगाली इतिहास (History of Goa Liberation in Hindi)

पुर्तगाली सैनिक नाविक वास्कोडिगामा (Vasco da Gama) समुंद्री रास्ते की मदद से यूरोप से भारत वर्ष 1498 में आया, इसके बाद कई पुर्तगालियों ने भारत के लिए यात्राएं की। 1510 तक अल्फांसो द अलबुकर्क ने विजयनगर के सम्राट की मदद से बीजापुर के सुल्तान युसुफ आदिलशाह पर आक्रमण कर गोआ पर अपना अधिकार जमा लिया।

पुर्तगालियों द्वारा गोवा को वॉइस किंगडम का दर्जा दिया गया तथा इसे एशिया के पुर्तगाली शासित क्षेत्रों की राजधानी तक घोषित कर दिया गया।

गोवा पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए पुर्तगालियों ने यहां नौसैनिक अड्डे बनाए तथा इसके विकास के लिए काफी खर्च भी किया। देखते ही देखते यह एक समृद्ध राज्य बन गया। और यहां के नागरिकों को लिस्बन के समान अधिकार दिए गए।

 

गोवा में अंग्रेजी शासन का उदय और अस्त

1809 से 1815 के बीच नेपोलियन के पुर्तगाल पर कब्जा करने के बाद गोवा पर भी अंग्रेजी हुकूमत का अधिकार हो गया और 1947 तक यह अंग्रेजों का गुलाम रहा। हालंकि ब्रिटिश हुकूमत द्वारा इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के तहत उनके अधीन सभी जमीनों को उन्होंने भारत को सौंप दिया गया।

इसके बावजूद भारत के कुछ हिस्सों पर पुर्तगालियों ने अपना कब्जा जमाए रखा जिसमें गोवा, दमन एवं दीव और दादर नगर हवेली भी शामिल थे। बताया जाता है कि अंग्रेजों ने भारत के खिलाफ दोगली नीति और पुर्तगाल के दबाव में आकर गोवा को पुर्तगालियों के हवाले कर दिया था।

 

गोवा मुक्ति आंदोलन (Goa Liberation Movement in Hindi)

गोवा मुक्ति आंदोलन वर्ष 1928 में शुरू हुआ जब गोवा के राष्ट्रवाद का जनक माने जाने वाले ‘डॉ. टी.बी. चुन्हा‘ की अध्यक्षता में मुंबई में ‘गोवा कांग्रेस समिति‘ का गठन किया गया। हालंकि पहले भी इसकी पुर्तगालियों से आजादी के लिए कई छोटे-मोटे संघर्ष चलते रहे, लेकिन इस स्वतंत्रता आंदोलन को डॉ. राम मनोहर लोहिया जी के गोवा पहुंचने के बाद काफी तेज रफ्तार मिली।

डॉ. राम मनोहर लोहिया ही वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने गोवा की आजादी के मुद्दे को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाया। उन्होंने 1942 से ही गोवा को मुक्ति दिलाने का जिम्मा उठाया था।

 

गोवा मुक्ति संग्राम में राममनोहर लोहिया जी की भूमिका

गोवा मुक्ति आंदोलन की अगुवाई देश के महान समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने ही की थी। जहाँ कई बड़े-बड़े राजनेता यह सोचते थे की पुर्तगाली अंगेजों के साथ ही इस देश को छोड़कर चले जाएंगे तो वहीं लोहिया जी को यह पूर्ण विश्वास था की बिना आंदोलन किए पुर्तगाली गोवा को छोड़कर नहीं जाने वाले।

डॉ. लोहिया जी की बात शत प्रतिशत सच निकली भारत की आजादी के कई साल बीतने के बाद भी पुर्तगाली गोवा को छोड़ कर नहीं गए। इसके बाद उन्होंने 18 जून 1946 को गोआ जाकर वहाँ के लोगों को पुर्तगालियों के खिलाफ आंदोलन की चिंगारी जलाई।

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गोआ में पहली बार हुआ आजादी का रणहुंकार

1946 में जब गोआ की राजधानी पंजिम (पणजी) में डा0 लोहिया की सभा में सविनय अवज्ञा की शुरुआत हुई तो वहाँ की पुलिस द्वारा टैक्सी सुविधा को बंद कर दिया गया। वह नजारा देखने लायक था जब 20 हजार की जनता के बीच घनघोर बारिश में लोहिया मड़गाँव स्थित इस सभा स्थल पर घोड़ागाड़ी से पहुँचे, हालंकि उन्हें वहाँ से गिरफ्तार कर लिया गया।

जिसके बाद पंजिम थाने पर गोवा की जनता द्वारा आक्रमण कर उन्हें बाहर निकलने का प्रयास किया गया। 500 वर्ष के इतिहास में गोवा में पहली बार आजादी का रणहुंकार हुआ। कई हिंसक और उग्र हुए विद्रोहों और जन सत्याग्रहों के बाद सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाने पर मजबूर हो गई।

 

भारतीय सेना का गोवा मुक्ति अभियान (ऑपरेशन विजय)

भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी ने पुर्तगाली सरकार से इन इलाकों को भारत को सौंपने का अनुरोध किया, लेकिन पुर्तगाली सरकार ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि जब उन्होंने गोवा पर कब्जा किया था तब भारत गणराज्य अस्तित्व में ही नहीं था

तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, रक्षा मंत्री कृष्ण मेमन और गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल जी द्वारा पुर्तगाल सरकार से कई बार अनुरोध किया गया व कई कूटनीतिक तरीके भी अपनाए गए। परन्तु इन तरीकों से काम नहीं बना तो अंततः दिसंबर 1961 में तीनों सेनाओं (जल सेना, थल सेना और वायु सेना) को युद्ध के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया गया।

जिसके बाद भारतीय सशस्त्र सेना बलों द्वारा 17 और 18 दिसंबर 1961 को ‘ऑपरेशन विजय‘ के तहत पुर्तगाली सेना पर आक्रमण कर दिया गया। भारतीय वायु सेना द्वारा पुर्तगाली ठिकानों पर बमबारी की गई तो वहीं थल सेना ने जमीनी स्तर पर हमले किए तथा समुंद्र में नौसेना से घिरा पाकर पुर्तगालियों ने आत्मासमर्पण कर दिया।

36 घंटे से अधिक समय तक चले इस युद्ध में पुर्तगाली सेना के आत्मसमर्पण के बाद तत्कालीन पुर्तगाल के गवर्नर जर्नल वसालो इ सिल्वा ने उस समय भारतीय सेना प्रमुख रहे पीएन थापर के सामने आत्मासमर्पण समझौते पर दस्तखत किए तथा भारत की ओर से ब्रिगेडियर एस एस ढिल्लों ने यह आत्मसमर्पण स्वीकार करने वाले दस्तावेजों पर दस्तखत किये। और इस तरह गोआ को पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन से मुक्ति मिली।

 

गोवा मुक्ति आंदोलन में राजाभाऊ महाकाल और मधु लिमये का का योगदान

1955 में गोवा सत्याग्रह आंदोलन के दौरान देवास से उज्जैन के क्रांतिकारी राजाभाऊ महाकाल के नेतृत्व में 400 सत्याग्रहियों का एक जत्था 15 अगस्त की सुबह जब गोवा की सीमा को पार करते हुए जा रहा था, तब पुर्तगालियों की गोलियों का सामना करने के लिए राजाभाऊ तिरंगा लिए सबसे आगे चल रहे थे। इसी दौरान उनके सिर पर गोलियां लगी और राष्ट्रभक्त राजाभाऊ ने गोआ मुक्ति के लिए अपना बलिदान दे दिया।

तो वहीं दूसरी ओर पूना के मधु लिमये भी जुलाई 1955 में एक बड़े सत्याग्रह का नेतृत्व करते हुए गोवा में प्रवेश कर रहे थे तभी पुर्तगाली पुलिस ने सभी सत्याग्रहियों पर हमला कर दिया और उन्हें बड़ी बेरहमी से पीटा गया। बाद में उन्हें कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गयी, इस दौरान उन्होंने अपना बचाव तक नहीं किया। वहां की जेल से आने के बाद भी मधु लिमये गोआ मुक्ति के लिए लोगों को एकजुट करते रहे।

 

गोवा का पहला मुख्यमंत्री कौन बना?

19 दिसम्बर 1961 को गोआ के भारत में विलय होने के बाद 20 दिसम्बर, 1962 को दयानंद बांदोडकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। उस समय गोआ केंद्र शासित प्रदेश था। गोवा की आज़ादी के 26 वर्ष बाद 30 मई 1987 को संविधान में 56वां संशोधन कर गोवा को भारत के 25वें राज्य का दर्जा मिला तथा दमन एवं दीव को केंद्र शासित प्रदेश बनाए रखने की घोषणा की गयी।

पणजी को इसकी राजधानी बनाया गया और कोंकणी यहां की राज भाषा घोषित की गई।

 

गोवा का स्थापना और आजादी दिवस कब होता है?

जहाँ 19 दिसंबर 1961 को गोवा को पुर्तगालियों से मिली आज़ादी को याद करते हुए हर साल 19 दिसम्बर को गोवा मुक्ति दिवस मनाया जाता है, तो वहीं 30 मई, 1987 को गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने की ख़ुशी में लोग हर साल 30 मई को गोवा स्थापना दिवस (Goa Statehood Day) मनाते है।


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