छठ पूजा 2025: शुभ मुहूर्त, कथा, महत्व और अरग का समय

Chhath Puja Kab Hai 2025: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला छठ पूजा का पर्व इस साल 25 अक्टूबर को सोमवार के दिन मनाया जा रहा है। जानिए अर्घ का समय और शुभ मुहूर्त...

2025 में छठ पर्व कब है?

छठ पूजा 2025 कब है: दिवाली के छः दिन बाद कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला छठ पर्व (Chhath Parva) इस साल 2025 में सोमवार, 27 अक्टूबर को है। 4 दिनों तक चलने वाला यह त्यौहार कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी तक होता है। इस साल यह मंगलवार, 25 अक्टूबर को नहाए खाए के साथ शुरू होगा।

साल में तीन छठी मनाई जाती है, ललही छठ (हल षष्ठी), चैती छठ और कार्तिक छठ। इसे डाला छठ (Dala Chhath), छठ माई (Chhathi Maiya), सूर्य षष्ठी (Surya Shashti) और प्रतिहार षष्ठी (Pratihar Sashthi) आदि के नामों से भी जाना जाता है। आइए अब आपको छठ पर किस भगवान की पूजा होती है? सूर्योदय का समय, इसका महत्त्व और पौराणिक कथा और इसे कैसे मनाते है इसके बारे में विस्तार से जानते हैं। उससे पहले आप सभी को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं!

छठ पूजा 2025 कब है
छठ पूजा 2025 कब है
छठ पूजा 2025 कैलेंडर लिस्ट
पहला दिननहाय-खायशनिवार, 25 अक्टूबर
दूसरा दिनलोहंडा और खरनारविवार, 26 अक्टूबर
तीसरा दिनसंध्या अर्घ्यसोमवार, 27 अक्टूबर
चौथा दिनउषा अर्घ और पारणमंगलवार, 28 अक्टूबर

 

छठ पूजा 2025 शुभ मुहूर्त और अरग देने का समय

छठ पर्व कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की षष्टी तिथि को मनाया जाता है, इस साल कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि 27 अक्टूबर 2025, प्रातः 06:04 बजे से प्रारंभ हो रही है जो 28 अक्टूबर, प्रातः 07:59 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार 2025 में छठ पूजा सोमवार, 27 अक्टूबरको मनाई जा रही है।

अरग देने का समय 2025: छठ पूजा पर संध्या अर्घ्य 27 अक्टूबर को शाम 05:40 बजे और उषा अर्घ्य और व्रत पारण 28 अक्टूबर को सुबह 6:30 बजे किया जाएगा।

  • छठ पर्व तिथि:- 27 अक्टूबर 2025, सोमवार
  • छठ के दिन सूर्यास्त (संध्या अर्घ्य):- 27 अक्टूबर, शाम 05 बजकर 40 मिनट
  • छठ के दिन सूर्योदय (उषा अर्घ्य):- 28 अक्टूबर, सुबह 06 बजकर 30 मिनट

 

छठ पूजा कथा/कहानी (Chhath Puja Katha/Story In Hindi)

एक पौराणिक कथा की माने तो प्रियवद नामक राजा की कोई संतान ना होने के कारण वह महर्षि कश्यप से पुत्र प्राप्ति यज्ञ (पुत्रेष्टि यज्ञ) करा कर, अपनी पत्नी मालिनी को यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। जिसके बाद उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई लेकिन वह मृत शरीर के साथ संसार में आया।

राजा प्रियवद अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और शरीर त्यागने लगे यह देख ब्रह्मा भगवान की मानस कन्या देवसेना वहां पहुंची और उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि वह संसार की असल प्रवृत्ति के छठे हिस्से से उत्पन्न हुई हैं इसीलिए उन्हें ‘षष्ठी‘ कहा जाता है।

अगर आप मेरी यानी षष्टि की पूजा करें और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें, तो आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। माता षष्ठी के बताए अनुसार राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत (Fast) किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।


 

रामायण से सम्बंधित छठ की कहानी:

बताया जाता है कि लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान श्री राम ने छठ पूजा (कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी) के दिन अपनी पत्नी सीता के साथ व्रत रख सूर्य देव की आराधना की और सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया।


महाभारत से जुड़ी छठ कथा:

महाभारत काल के मान्यता के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत महाभारत के समय हुई थी जिसे सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने शुरू किया था, बताया जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त के रूप में जाने जाते थे, वह प्रतिदिन कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया करते थे, और उन्हीं की कृपा से वह एक महान योद्धा बन पाए थे।

और छठ पूजा में अर्घ्य देने की पद्धति वहीं से चली आ रही है, साथ ही पांडवों के पत्नी द्रोपदी भी सूर्य पूजा कर अपने परिजनों के बेहतर स्वास्थ्य की कामना करते हुए नियमित सूर्य पूजा करती थी।

 

छठ के दिन किसकी पूजा होती है? महत्व (Importance)

छठ पूजा के दिन सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है वेदों के अनुसार सूर्य देवता मनुष्य और सभी प्राणियों के लिए उपलब्ध एकमात्र ऐसे भगवान है जिनके दर्शन हम नियमित रूप से कर सकते हैं। सूर्य के प्रकाश से कई रोगों का विनाश तो होता ही है साथ ही वेदों में सूर्य देव को दुनिया की आत्मा माना गया है।

इस दिन सूर्य देव और छठी मैया की विधि विधान से पूजा करने वालों की गोद कभी सुनी नहीं रहती साथ ही छठी मैया संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं व्रत रखने वाले की सभी इच्छाएं भी पूर्ण होती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।


 

पौराणिक मान्यता

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ माता को सूर्य देव की बहन माना जाता है, और इस दिन सूर्य देव की भी पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि छठ पर सूर्य की उपासना करने से छठी मैया प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति बनी रहती है। यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार षष्ठी देवी सृष्टि कर्ता ब्रह्माजी की मानस पुत्री है जिन्हें मां कात्यायनी के रूप में जाना जाता है।

 

छठ पर्व कैसे मनाया जाता है? (Chhath Celebration)

छठ पूजा एक 4 दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व है, जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होती है और यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को समाप्त होती है जिसमें लगातार 36 घंटे निर्जला (बिना पानी) के व्रत रखना होता है।

यह त्यौहार मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश समेत देश के कई अन्य हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है, दिल्ली के यमुना तट और छठ घाटों पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिलती है।

 

Chhath Puja Day 1: नहाए खाए (कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी):

छठ पूजा का पहला दिन नहाए खाए से आरंभ होता है जिसमें घर की अच्छी तरह सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है और छठ पर व्रत रखने वाले को शुद्ध और शाकाहारी भोजन दिया जाता है।

साथ ही व्रत रखने वाले सदस्य के खाना खाने के बाद ही घर के सभी सदस्य खाते हैं इस दिन भोजन के रूप में दाल और चावल ग्रहण किया जाता है।


Chhath Puja Day 2: खरना (कार्तिक शुक्ल पंचमी):

इसके बाद अगले दिन छठ व्रत रखने वाला सदस्य दिन भर उपवास रखता है और शाम को भोजन ग्रहण करता है जिसे ‘खरना‘ कहा जाता है।

प्रसाद के रूप में बिना नमक और चीनी इस्तेमाल किए गन्ने के रस से बनी चावल की खीर और दूध चावल का पीठा और घी की रोटी बनाई जाती है और खरना प्रसाद को आसपास सभी लोगों को बुला कर दिया जाता है।


Chhath Puja Day 3: संध्या आराध्य (कार्तिक शुक्ल षष्ठी):

छठ पूजा के तीसरे दिन छठ का प्रसाद तैयार किया जाता है। प्रसाद के तौर पर ठेकुआ और चावल के लड्डू बनाते हैं। साथ ही चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।

शाम को सभी तैयारीयों के साथ बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है, और परिवार में व्रत रखने वाले सदस्य के साथ सभी लोग पैदल सूर्य को अर्घ्य देने घाट पहुचते हैं।

सभी छठ व्रती एक झील, तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर एक साथ सूर्य देवता को अर्घ्य दान करते हैं। सुरुज भगवान को जल और दूध का अर्घ्य देने तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा करने की प्रथा है।


Chhath Puja Day 4: (कार्तिक शुक्लपक्ष सप्तमी):

चौथे दिन यानि कार्तिक शुक्लपक्ष की सप्तमी को सुबह उगते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। ब्रत (Fast) रखने वाले सभी लोग फिर वहीं झील, तालाब या नदी के किनारे इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। सुबह दुबारा अर्घ्य देने के बाद प्रसाद खाकर व्रत पूरा करते हैं।

 

छठ पूजा विधि (Chhath Puja Vidhi)

छठ पूजा के लिए कुछ जरूरी सामग्रियों की आवश्यकता होती है जिससे छठी मैया की विधि विधान से पूजा और सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जा सके यह सामग्री निम्नलिखित है:

बांस के तीन सूप, तीन बड़ी टोकरिया, चावल, दीया, हल्दी, दूध, शकरकंदी, सुथनी, सब्जी, सिंदूर, नारियल, गन्ना, साबुत, सुपारी, कपूर, नाशपाती, नींबू, शहद, पान और चंदन आदि।

प्रसाद भी काफी स्वच्छता और पवित्र तरीके से तैयार किया जाता है, जिसमें ठेकुआ, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू तथा मालपुआ एवं खीर-पूरी आदि शामिल होता है।

अरग देते समय सभी सामग्रियों को बांस की टोकरी में रखे एवं प्रसाद को सूप में रखकर इस पर एक दिया जलाएं और फिर नदी के पानी में उतर कर सूर्य देव की पूजा कर अर्घ्य दें।


 

डिस्क्लेमर: यह सभी जानकारियां इंटरनेट पर उपलब्ध अलग-अलग स्रोतों से इकट्ठा की गई है, HaxiTrick.Com इसकी पुष्टि नहीं करता। कृपया किसी भी जानकारी पर अमल करने से पहले किसी ज्ञानी व्यक्ति या पंडित की सलाह अवश्य लें।

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