Govardhan Puja 2023: कब, क्यों और कैसे मनाते है गोवर्धन पूजा, शुभ मुहूर्त, कथा और पूजा विधि Wishes Photos
Govardhan Pooja 2023 Date: गोवर्धन पूजा या अन्नकूट (Annakut Puja) का त्यौहार हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है, इस साल 2023 में यह मंगलवार, 14 नवम्बर को है। इस दिन गोधन और गोबर की पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व कृष्ण से जुड़े स्थलों पर काफी धूमधाम से मनाया जाता है।
गोधन का संबंध गायों और श्रीकृष्ण भगवान के साथ ही प्रकृति और मनुष्य कल्याण से भी है। बृज भूमि पर श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव को अपना कर्तव्य याद दिलाने के लिए गोकुल वासियों को गोवर्धन की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था और देवराज इंद्र के अहंकार को समाप्त किया था।
Govardhan Puja kab hai Shubh Mahurat Katha |
2023 में गोवर्धन पूजा कब है? शुभ मुहूर्त (Date & Shubh Mahurat)
आमतौर पर यह त्योहार दीपावली के अगले दिन होता है और इस साल यह मंगलवार, 14 नवम्बर होगा।
गोवर्धन पूजा मुहूर्त | मंगलवार, 14 नवम्बर को सुबह 06:29 बजे से 08:43 बजे तक |
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ | सोमवार 13 अक्टूबर दोपहर 02:55 बजे से |
प्रतिपदा तिथि समाप्त | मंगलवार 14 नवम्बर दोपहर 02:40 तक |
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गोवर्धन पूजा का महत्व (Goverdhan Puja Importance)
गोवर्धन पूजा द्वापर युग में श्री कृष्ण काल से ही मनाई जाती रही है, भगवान् श्री कृष्ण जी ने ही बृजवासियों से गिरिराज गोवर्धन की पूजा करने का आग्रह किया था। हिंदू धर्म में यह पर्वत सभी तीर्थ स्थलों में सबसे ज्यादा पूजनीय माना गया है तथा पुराणों की माने तो पृथ्वी पर इसके समान कोई अन्य तीर्थ नहीं है।
हालांकि यह उत्तर प्रदेश के बृज में स्थित एक छोटा सा पहाड़ है लेकिन इसे पर्वतों का राजा भी माना जाता है क्योंकि यह हरि के प्रिय और हमारे भगवान श्री कृष्णा की आस्था से जुड़ा हुआ है। माना तो यह भी जाता है कि यमुना नदी ने द्वापर युग से अब तक कई बार अपना रास्ता बदला लेकिन यह पर्वत आज भी उसी स्थान पर स्थित है।
अन्नकूट का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं इसका सामाजिक महत्व भी है जो पर्यावरण की रक्षा और सुरक्षा के लिए लोगों को प्रतिबद्ध करता है द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए इसलिए कहा था क्योंकि यह हमें पेड़-पौधे, औषधियां, गायों और पशुओं के लिए चारा एवं हमारे खाने के लिए फल-फूल आदि का प्रबंध करता है और पर्यावरण के लिए लाभकारी है।
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गोवर्धन पूजा के दिन ही भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा की जाती है और कारखानों एवं उद्योगों में मशीनों की पूजा का भी महत्व है। यहाँ देखें: विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि
गोवर्धन पूजा करने की विधि (Puja Vidhi):
- गोवर्धन पूजा के दिन सबसे पहले आपको गोबर की मदद से गोवर्धन जी (एक लेटे हुए पुरुष) की आकृति बनानी होती है, जो कुछ इस तरह दिखती है।
- अब इस आकृति को फूलों से सजाएं और इसकी नाभि के स्थान पर एक मिट्टी का दीया रख दें।
- पूजा करते समय इस पर धूप, जल, फल, आदि चढ़ाए जाते हैं, और नाभि पर रखे दीए में गंगाजल, बताशे, दूध, दही, आदि डाले जाते हैं, जिन्हें बाद में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
- पूजा करने के बाद आकृति की सात परिक्रमा लगाएं और इस दौरान जौ के बीज बोते हुए और जल गिराते हुए परिक्रमा को पूरा करें।
- साथ ही इस दिन कृषि में काम आने वाले पशुओं जैसे गाय, बैल आदि की पूजा करें।
- इस दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा भी की जाती है,
- इस दिन अन्नकूट (Annakut) यानी अन्न के मिश्रण से खिचड़ी तैयार की जाती है, और भगवान श्री कृष्ण को चढ़ाकर लोगों को प्रसाद के रूप में बांट दी जाती है.
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श्रीकृष्ण लीला: गोवर्धन पूजा की कथा/कहानी (Story)
पौराणिक कथा और कृष्ण लीला के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण की मैया यशोदा और समस्त बृजवासी देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे थे, तो श्रीकृष्ण ने अपनी मां से कहा कि हमें इंद्र देव की पूजा ना करते हुए गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि गोवर्धन पर्वत से ही हमें अन्न, औषधि एवं इस पर लगे पेड़ पौधों के कारण ही बारिश होती है और गायों को चारा तथा फल-फूल आदि चीजें प्राप्त होती हैं।
यह बात सुनकर यशोदा और समस्त गोकुल वासी श्री कृष्ण की बात से सहमत हो गए और उन्होंने इंद्रदेव को छोड़ गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ कर दी, यह देख देवराज इंद्र क्रोध में आ गए और उन्होंने अपने अपमान का बदला लेने और गोकुल वासियों को सबक सिखाने के लिए मुसलाधार बारिश शुरू कर दी।
आकाश से गिरते प्रलयकारी जल को देख गोकुलवासी भयभीत हो गए और इस दौरान भगवान श्री कृष्ण ने अपने प्रिय गोकुल वासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी सी उंगली पर उठा लिया तथा सभी गोकुल वासी इसकी शरण में चले गए।
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यह देख इंद्रदेव बोखला गए और उन्होंने बारिश और तेज कर दी 7 दिन लगातार बारिश पडने के बाद भी गोकुल वासियों को कोई हानि नहीं हुई, जिसे देख इंद्रदेव को समझ आ गया कि यह कोई साधारण बालक नहीं है, और जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है तो उन्होंने उनके समक्ष आकर क्षमा याचना की तथा भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देव से निस्वार्थ अपना कर्तव्य निभाने को कहा।
साथ ही उन्होंने बृज वासियों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करने और उन्हें अन्नकूट का भोग (Annakut Ka Bhog) लगाने की अनुमति दी। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है और इस दिन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने देशभर से लोग पहुंचते हैं।
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डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य और पौराणिक मान्याताओं पर आधारित है जिसे सरलीकृत कर आपके सामने प्रस्तुत किया गया है, HaxiTrick.Com इसकी पुष्टि नहीं करता।