Maharishi Valmiki Jayanti 2020: शरद पूर्णिमा जानिए कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है महर्षि वाल्मीकि जयंती? कुछ फैक्ट्स और फोटोज
Maharishi Valmiki Jayanti 2020: हिंदू महाकाव्य रामायण लिखने वाले संस्कृत कवि ऋषि वाल्मीकि की जयंती को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि बाल्मीकि अपने प्रारंभिक दिनों में मुसाफिरों को लूटने वाले एक राजमार्गिया डाकू थे। लेकिन आप उनके जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिन्होंने उन्हें डाकू से महर्षि बना दिया उनका जीवन आज बहुत से लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है।
आज के इस लेख में हम आपको महर्षि वाल्मीकि जयंती कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है? तथा महर्षि वाल्मीकि कौन थे। और वह एक डाकू से महर्षि कैसे बने तथा उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा कहां से मिली के बारे में जानने जा रहे हैं।
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Maharishi Balmiki Jayanti Subhkamnaye Images |
Maharishi Valmiki Jayanti 2020 Information in Hindi
नाम: | महर्षि वाल्मीकि जयंती (वाल्मीकि प्रगट दिवस) |
आवृत्ति: | वार्षिक |
तिथि: | आश्विन शुक्ला पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) |
कारण: | भगवान वाल्मीकि की जयंती |
विधि: | व्रत, पूजा, कथा, भजन-कीर्तन, वाल्मीकि मंदिर |
अगली बार: | 20 अक्टूबर 2021 (बुधवार) |
महर्षि वाल्मीकि जयंती कब की है? Valmiki Jayanti 2020 Date
हर साल अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (जिसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है) को महर्षि वाल्मीकि की जयंती मनाई जाती है क्योंकि इसी दिन महर्षि बाल्मीकि जी का जन्म हुआ था। और इस साल 2020 में बाल्मीकि जयंती 31 अक्टूबर को शनिवार के दिन पड़ रही है। तो वहीँ 2021 में यह 20 अक्टूबर 2021, बुधवार को मनाई जाएगी।
वाल्मीकि जयंती की तिथि हर साल बदलती है और भारतीय चंद्र कैलेंडर द्वारा निर्धारित की जाती है। यह ज्यादातर सितंबर के अंत या अक्टूबर के महीने में पड़ती है।
वाल्मीकि जयंती की तिथि और शुभ मुहूर्त:
वाल्मीकि जयंती की तिथि: शनिवार, 31 अक्टूबर 2020
शरद पूर्णिमा तिथि 31 अक्टूबर 2020 से आरंभ होगी।
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महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय: डाकू से महर्षि कैसे बने?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप तथा अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के यहाँ हुआ था। बताया जाता है कि बचपन में ही उन्हे एक भीलनी ने चुरा लिया था और भील समाज में लालन पालन होने पर वे डाकू बन गए।
उस समय उनका नाम रत्नाकर था और वे अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए जंगल से गुजरने वाले राहगीरों को लूटते और जरूरत पड़ने पर उन्हें जान से भी मार दिया करते थे।
बताया जाता है कि एक दिन उसी जंगल से नारद मुनि के गुजरने पर रत्नाकर आथार्त बाल्मीकि जी ने लूटने के विचार से उन्हें बंदी बना लिया। इसके बाद तो उनका जीवन में जो बदलाव आया वो आज भी सबको याद है। आइए अब आपको इससे आगे की कहानी बताते हैं और जानते हैं कि महर्षि बाल्मीकि रत्नाकर डाकू से महर्षि वाल्मिकी कैसे बने।
नारद मुनि को बंदी बनाने के बाद जब उन्होंने उनसे पूछा कि: तुम ऐसे पाप क्यों करते हो?
रत्नाकर ने जवाब देते हुए कहा कि: मैं यह सब अपने परिवार के लिए करता हूँ।
यह जवाब सुनने के बाद नारद मुनी ने पूछा:"क्या तुम्हारा परिवार भी तुम्हारे पापों का फल भोगेगा?"
रत्नाकर ने तुरंत जवाब दिया: बिलकुल, मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहेगा।
इस पर नारद मुनि ने कहा कि एक बार जाकर अपने परिवार से पूछ लो।
नारद जी की बात मनाते हुए रत्नाकर ने जब यह सवाल अपने परिवार से किया तो सबने इंकार कर दिया। जिसके कारण रत्नाकर का ह्रदय बेहद दुखी हो गया और उसने पाप का रास्ता छोड़ दिया।
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Valmiki Jayanti Ki Hardik Shubhkamnaye images |
वाल्मीकि को कैसे मिली रामायण लिखने की प्रेरणा
नारद मुनि से मिलने और अपने परिवार वालों के ऐसे जवाब सुनने के बाद रत्नाकर को अकल आ चुकी थीं।
उसने ड़ाकैती और पाप की दुनिया को छोड़ने का फैसला किया, लेकिन आगे के उसे क्या करना है इसका ज्ञान नहीं था इसीलिए उसने नारद मुनि से ही सलाह लेने की सोची तो नारद मुनि ने उसे राम नाम जपने की सलाह दी।
कैसे बने बाल्मीकि:
जिसके बाद रत्नाकर अज्ञानी होने के कारण 'राम' नाम का जाप करने की बजाय वह 'मरा-मरा' करता रहा, जो लगातार दोहराए जाने से 'राम-राम' में उच्चारित होने लगा।
बताया जाता है कि रत्नाकर द्वारा किए गए कई वर्षों के कठोर तप के कारण उसके शरीर पर चीटियों ने बाम्भी बना दी, जिसकी वजह से उनका नाम वाल्मीकि पड़ा।
उनकी कई वर्षों की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें ज्ञानी होने का वरदान दिया। ब्रह्मा जी से प्रेरणा लेकर ही उन्होंने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की।
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वाल्मीकि जयंती कैसे मनाई जाती है?
वाल्मीकि जयंती के दिन उनके जन्मदिन को देश भर में बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में वाल्मीकि जी की विशेष पूजा-अर्चना एवं आरती की जाती है।
साथ ही वाल्मीकि जयंती पर शोभा यात्रा का भी खासा महत्व है, जिसमें लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इस दिन भगवान राम नाम का जाप एवं रामायण के पाठ करना बेहद शुभ माना जाता है।
वाल्मीकि जयंती पर, वाल्मीकि संप्रदाय के अनुयायी (जो ऋषि की शिक्षाओं पर बने थे) एक जुलूस निकालते हैं और भक्ति गीत गाते हैं।
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महर्षि वाल्मीकि के बारे में कुछ खास बातें | Facts about Maharishi Valmiki
- वाल्मीकि ने हिंदू महाकाव्य रामायण को लिखा जिसमें 24,000 श्लोक और 7 कैंटोस (कंडा) शामिल हैं, जिसमें उत्तर सैंटो शामिल है।
रामायण में ऋषि वाल्मीकि भी एक पात्र (एक साधु के रूप में) के रूप में प्रकट होते हैं, जिन्होंने भगवान राम की पत्नी सीता को अपने धर्मोपदेश में प्राप्त किया और अपने निर्वासन काल में भगवान राम-सीता के पुत्रों लव और कुश को पढ़ाया। - ऋषि वाल्मीकि को आदि कवि के रूप में भी जाना जाता है।
- महर्षि वाल्मीकि जी की जन्म तिथि और समय ज्ञात नहीं है, लेकिन उनकी जयंती, हिंदू कैलेंडर के अनुसार, आश्विन पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है।
- अपने प्रारंभिक वर्षों के दौरान, महर्षि वाल्मीकि - रत्नाकर नाम से मशहूर एक राजमार्ग डाकू थे।
ऐसा माना जाता है कि ऋषि नारद मुनि ने उन्हें भगवान राम का एक बड़ा भक्त बनाकर राम नाम मंत्र दिया था। - ऋषि नारद मुनि ने उन्हें "मरा" शब्द दोहराने के लिए कहा, जिसका अर्थ है "मरना" होता है।
लेकिन लगातार "मरा" शब्द दोहराए जाने पर, उसका उच्चारण मरा से "राम" बन गया, अथार्त भगवान विष्णु के अवतार "श्री राम"। - वर्षों तक ध्यान लगाने के बाद, और ऋषि नारद मुनि द्वारा दिए गए मंत्र को दोहराते हुए, उनके चारों ओर दीमकों द्वारा विशाल पहाड़ियों का निर्माण हुआ, जिससे उन्हें वाल्मीकि नाम मिला, क्योंकि दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है।
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Maharishi Valmiki Jayanti Wishes Photos hindi |
महर्षि वाल्मीकि जयंती क्यों मनाई जाती है? महत्व
महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिन को प्रगट दिवस भी कहा जाता है।
भारतीय संस्कृति में हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के आदर्श माने जाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन को संस्कृत भाषा में महाकाव्य के रूप में पिरो कर रामायण की रचना करने वाले एवं माता सीता को आश्रय देने वाले और उनके दोनों बेटों लव और कुश की शिक्षा दीक्षा करने वाले आदि कवि महर्षि वाल्मीकि का महत्व काफी ज्यादा है।
महर्षि बाल्मीकि जयंती उत्तर भारत के हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, मध्य प्रदेश समेत भारत के कई अन्य राज्यों में भी हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
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महर्षि वाल्मीकि का मंदिर | Valmiki Temple in India
महर्षि वाल्मीकि जी का 1300 साल पुराना मंदिर चेन्नई के तिरुवन्मियूर में स्थित है ऐसा माना जाता है कि महाकाव्य रामायण की रचना करने के बाद ऋषि वाल्मीकि ने इसी स्थान पर विश्राम किया और भगवान शिव की उपासना भी की। और बाद में उसी स्थान पर महा ऋषि वाल्मीकि के नाम का मंदिर बनवा दिया गया।
इतनी ही नही यह भी माना जाता है की इस शहर का नाम भी वाल्मीकि जी के नाम पर ही पड़ा है जो है थिरुवन्मियूर आथार्त थिरु-वाल्मीकि-ऊर।
अंतिम शब्द
डाकू से एक महान ऋषि बनने की इस प्रक्रिया से आप प्रेरणा ले सकते हैं और आज से ही बुरे कामों को त्याग कर सही मार्ग की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
आपको महर्षि वाल्मीकि जयंती 2020 और वाल्मीकि महर्षि वाल्मीकि के बारे में यह जानकारी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं और इस लेख को अपने फ्रेंड्स के साथ भी जरूर शेयर करें ताकि उन्हें भी Maharishi Valmiki Jayanti 2020 के बारें में जानकारी मिल सके।