2025 में महावीर जन्म कल्याणक कब है?
Mahavir Jayanti 2025 Date: ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर साल महावीर जयंती का शुभ दिन मार्च या अप्रैल महीने में पड़ता है, इस साल 2025 में महावीर स्वामी का जन्मोत्सव गुरुवार, 10 अप्रैल को मनाया जा रहा है। इस पर्व का जैन धर्म में विशेष महत्व है, और इसके उपासको द्वारा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
प्रतिवर्ष चैत्र शुक्लपक्ष त्रयोदशी को जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक के उपलक्ष में भगवान महावीर की जयंती मनाई जाती है। इनका जन्म आज से लगभग 2622 वर्ष पूर्व इसी दिन बिहार के वैशाली स्थित एक गांव के राजपरिवार में हुआ था।
नाम | महावीर जन्म कल्याणक |
तिथि | चैत्र माह शुक्लपक्ष त्रयोदशी (वार्षिक) |
तारीख (2025) | गुरुवार, 10 अप्रैल |
महत्व | जैन धर्म और महावीर स्वामी की शिक्षाओं का प्रसार करना |
उत्सव | जैन मंदिर जाना, प्रार्थना और धार्मिक अनुष्ठान आदि करना |
अगली बार | गुरुवार, 10 अप्रैल 2025* |
महावीर जयंती कब है 2024, 2025 और 2026 में?
हिंदू पंचांग के अनुसार स्वामी महावीर का जन्म कल्याणक चैत्र माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल चैत्र शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि 09 अप्रैल रात 10:55 बजे से 11 अप्रैल देर रात 01:00 तक है ऐसे में इस साल गुरुवार, 10 अप्रैल 2025 को भगवान महावीर की 2623वीं जयंती मनाई जा रही है।
जहाँ 2023 में यह पर्व मंगलवार, 04 अप्रैल को था, तो वहीं 2024 में इसे रविवार, 21 अप्रैल को और 2026 में मंगलवार, 31 मार्च को मनाया जाएगा।
वर्ष | तिथि |
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2022 | गुरूवार, 14 अप्रैल |
2023 | मंगलवार, 04 अप्रैल |
2024 | रविवार, 21 अप्रैल |
2025 | गुरूवार, 10 अप्रैल |
2026 | मंगलवार, 31 मार्च |
*तारीखें बदल सकती है।
जैनियों द्वारा महावीर जयंती क्यों मनाई जाती है?
जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा महावीर जयंती का पर्व भगवान महावीर के जन्म एवं जैन धर्म की पुनः स्थापना के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसे मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य महावीर स्वामी की शिक्षाओं का प्रसार करना तथा शांति और सद्भाव का पालन करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना है।
महावीर द्वारा चार तीर्थों यानि साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका की स्थापना करने के कारण इन्हें ‘तीर्थंकर‘ भी कहा जाता हैं। यहां तीर्थंकर का तात्पर्य ‘कठिन साधना से अपनी आत्मा को तीर्थ‘ बनाने से है। अतिवीर के इन्ही सदविचारों के कारण आज भी वे लोगों द्वारा याद किए जाते हैं।
भगवान महावीर के अनमोल विचार और उपदेश (Mahavir Swami Quotes & Thoughts in Hindi)
स्वामी महावीर अपने उपदेशों के कारण आज भी जाने जाते हैं। आइए उनके कुछ अनमोल वचनों (कोट्स) को एक बार फिर से दोहराते है:-
जियो और जीने दो, जीवों के प्रति दयाभाव रखें!
अहिंसा परमो धर्म:
उस धन इकट्ठा करने का कोई अर्थ नहीं है, जिसे आप खर्च भी नहीं कर सकते।
अपने शत्रुओं पर विजय पाने से अच्छा, खुद पर विजय प्राप्त करना है।
धर्म प्राप्ति के लिए जीतना पड़ता है, और जीतने के लिए संघर्ष बेहद जरूरी है।
धर्म को खुद से धारण करना होता है यह कोई माँगने की वस्तु नहीं।
कैसे मनाते है Mahavir Jayanti का यह पर्व?
जैन धर्म का अनुसरण करने वालों द्वारा इस दिन को बड़े ही धूमधाम से और भगवान महावीर को याद करके मनाया जाता है। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी महावीर जी की प्रतिमा को शुद्धता से परिपूर्ण करने के लिए जल और सुगंधित तेलों से धोते हैं।
इस अवसर पर जैन मंदिरों को झंडों आदि से सजाया जाता है और कई शोभायात्रायें भी निकाली जाती है, जिसमें जैन भिक्षुओं द्वारा भगवान महावीर की प्रतिमा को रथयात्रा एवं नगर भ्रमण कराया जाता हैं और उनके उपदेशों और सिद्धांतों को जन-जन तक पहुँचाया जाता हैं।
भगवान महावीर जी का जीवन परिचय और इतिहास?
जन्म | 599 ईसा पूर्व कुछ जगहों पर 615 ई.पू. |
तारीख़ | चैत्र शुक्लपक्ष त्रयोदशी |
जन्म स्थान | कुण्डलपुर, वैशाली (बिहार) |
मूल नाम | वर्धमान |
माता-पिता | राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला |
ज्ञान प्राप्ति | कैवल्य ज्ञान, साल वृक्ष के नीचे |
मृत्यु (निर्वाण) | 527 ईसा पूर्व, कार्तिक अमावस्या (आयु 72 वर्ष) |
स्वामी महावीर का जन्म एक साधारण बालक के रूप में चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को भारत में बिहार और वैशाली के पास स्थित कुण्डलपुर गांव में ईसा से 599 वर्ष पूर्व (लगभग ढाई हजार साल पहले) एक इक्ष्वाकु वंश में हुआ। आपके बचपन का नाम वर्द्धमान था।
आपके पिता का नाम सिद्धार्थ था, जो एक क्षत्रिय राजा थे और आपकी माता जी का नाम त्रिशला (लिच्छवी राजकुमारी) था। आपके एक भाई भी थे जिनका नाम नंदिवर्धन और बहन सुदर्शना थी।
महावीर स्वामी अपने जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते थे परन्तु इनके माता-पिता ने इनका विवाह यशोदा नाम की एक कन्या के साथ कराया। जिनसे इन्हें प्रियदर्शिनी नामक पुत्री की प्राप्ति हुई।
कठिन साधना और ज्ञान की प्राप्ति:
संपन्न परिवार से संबंध होने के बावजूद वर्धमान ने अपनी 30 वर्ष की अवस्था में समस्त सुखों को त्यागकर साधना की तरफ कदम बढ़ाया और कुंडलपुर में दीक्षा की प्राप्त की। अपने निर्वासन काल के दौरान दिगम्बर साधु की कठिन चर्या का पालन करते हुए करीबन साढ़े बारह वर्षों तक तपस्या और मौन साधना करने के पश्चात् 42 वर्ष की आयु में वैशाख शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को जुम्भिक ग्राम के पास ऋजुबालुका नदी के किनारे ‘साल वृक्ष‘ के नीचे भगवान महावीर को ‘कैवल्य ज्ञान‘ की प्राप्ति हुई, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें वर्धमान के स्थान पर महावीर के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
जैन ग्रंथों की माने तो महावीर स्वामी का जन्म 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के मोक्ष प्राप्त करने के लगभग 188 वर्ष बाद हुआ था, और ये जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर है।
स्वामी जी को मोक्ष (मृत्यु) की प्राप्ति कब हुई?
527 ईसा पूर्व कार्तिक मास की कृष्ण अमावस्या को बिहार के पावापुरी (राजगीर) में स्थित जल मंदिर में अपनी 72 वर्ष की आयु में तीर्थंकर महावीर भगवान को निर्वाण (आत्मज्ञान) प्राप्त हुआ। इस दिन भारत में दीपावली मनायी जाती है। आपने दुनिया को अहिंसा परमो धर्म: का संदेश दिया, जिसका अर्थ है कि ‘अहिंसा सभी धर्मों से सर्वोपरि है’।
भगवान महावीर जी के 27 भव (Mahavir Swami 27 Bhav Story in Hindi)
कहा जाता है कि कर्म किसी को नहीं छोड़ता, यहाँ तक की अगर वह भगवान की ही आत्मा क्यों ना हो। भगवान की आत्मा के 27 भव में से उन्होंने 14 भव मनुष्य के किये, 10 भव देव के, तिर्यंच को 1 भव, सिंह का और भगवान महावीर स्वामी द्वारा पूर्व के भवों में किए पाप के कारण 2 भव नरक के करने पड़े।
जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत क्या है?
भगवान महावीर ने जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत दर्शाएं जो हैं – अहिंसा, सत्य, अचौर्य (अस्तेय), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। सभी जैन मुनि, श्रावक, श्राविका और आर्यिका को इन पंचशील सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
- 1. अहिंसा: जैन अनुयायियों और किसी भी धर्म को किसी भी परिस्थिति में हिंसा का सहारा नहीं लेना चाहिए।
- 2. सत्य: मनुष्य को सदैव सत्य के सानिध्य में रहना चाहिए और हमेशा सत्य बोलना चाहिए।
- 3. अस्तेय: अस्तेय के अनुसार लोगों को मन के मुताबिक वस्तु ग्रहण न करते हुए केवल वही ग्रहण करना चाहिए जो उन्हें दिया जाता है।
- 4. ब्रह्मचर्य: जैन धर्म के संबंधित लोगों को पवित्रता का पालन करना चाहिए और कामुक गतिविधियों दूर रहना चाहिए।
- 5. अपरिग्रह: अपरिग्रह का पालन करते हुए जैनियों को सांसारिक मोह-माया एवं भोग की वस्तुओं का त्याग करना चाहिए।
जैन धर्म के पहले तीर्थंकर कौन है?
दुनियाभर को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले महावीर जी जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर है। जैन धर्म के पहले गुरु, तीर्थंकर और सस्थापक ‘श्री आदिनाथ जी‘ है, जिन्हें ऋषभदेव जी के नाम से भी जानते है।
श्री आदिनाथ भगवान (ऋषभदेव जी) का जन्म आज से करोड़ों वर्ष पूर्व अयोध्या नगरी में राजा नाभिराय जी और मरूदेवी जी के यहाँ हुआ था।
डिस्क्लेमर: उपरोक्त जानकारी सामान्य मान्यताओं के अनुसार साझा की गयी है, HaxiTrick.com इसकी पुष्टि नहीं करता।
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