स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती 2023: आर्य समाज संस्थापक का जीवन परिचय और कोट्स फोटो

Swami Dayananda Saraswati Jayanti 2023: आर्य समाज संस्थापक दयानंद सरस्वती जी की बायोग्राफी और सुविचार (Quotes)

इस साल 2023 में महर्षि दयानंद सरस्वती जी की जयंती 15 फरवरी को बुधवार के दिन मनाई जा रही है, वे भारत के महान समाज सुधारक, देशभक्त, शुभचिंतक और आर्य समाज के संस्थापक थे। उनके विचारों से महात्मा गांधी जी जैसे कई वीर पुरुष प्रभावित थे। उन्होंने सन् 1875 में आर्य समाज की स्थापना की और 1857 की क्रांति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

आइए आज उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर हम उनकी Biography (जीवन परिचय) तथा कुछ सुविचारों (Quotes) के बारे में जानने का प्रयास करते है।

Swami Dayanand Saraswati Jayanti 2023 in Hindi
Swami Dayanand Saraswati Jayanti Ki Hardik Shubhkamnaye

 

स्वामी दयानन्द सरस्वती जी की जयन्ती कब है? (2022, 2023 और 2024 में)

12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में जन्में स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जयंती प्रत्येक वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार फागुन महीने की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को मनाई जाती है, इस साल 2023 में 15 फरवरी को स्वामी दयानन्द सरस्वती जी की 200वीं जयंती मनाई जा रही है।

स्वामी जी का जन्मदिन (Birthday) हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से मनाया जाता है, इसलिए अग्रेजी कैलेंडर में यह दिन हर साल अलग-अलग तारीख (Date) को पड़ता है। जहाँ 2022 में उनकी जयंती 26 फरवरी को थी तो वहीं अगली साल 2024 में स्वामी जी की जयंती 05 मार्च को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी।


स्वामी जी हिंदी भाषा के समर्थक थे तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ही भाषा (हिंदी) चाहते थे। उनके पास हिंदू धर्म का जितना भी ज्ञान था वह उसे संपूर्ण भारत देश में फैलाना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने भारत भ्रमण भी किया और वेदों की ओर लौटों का नारा दिया।

 

महर्षि दयानंद सरस्वती जी की जयंती पर उनके अनमोल विचार कोट्स (Thoughts Photos)

दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिए, और आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा।


Swami Dayanand Saraswati Quotes Photos In Hindi
Swami Dayanand Saraswati Quotes Photos in Hindi

 

अज्ञानी होना गलत नहीं है, अज्ञानी बने रहना गलत है।


Swami Dayananda Saraswati Slogan Image
Swami Dayananda Saraswati Slogan Image

 

“काम करने से पहले सोचना… बुद्धिमानी,
काम करते हुए सोचना… सतर्कता,
और काम करने के बाद सोचना…
मूर्खता है”


Arya Samaj Founder Anmol Suvichar Pics
Arya Samaj Founder Anmol Suvichar Pics

 

आत्मा अपने स्वरुप में एक है,
लेकिन उसके आस्तित्व अनेक है।


Swami Dayananda Saraswati Thoughts in Hindi
Swami Dayananda Saraswati Thoughts in Hindi

 

“ये शरीर नश्वर है, हमे इस शरीर के जरीए सिर्फ एक मौका मिला है, खुद को साबित करने का कि, ‘मनुष्यता’ और ‘आत्मविवेक’ क्या है”

Maharishi Dayanand Saraswati Jayanti Video Status:

 

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स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय (Biography in Hindi)

स्वामी दयानंद सरस्वती जी का जन्म 12 फरवरी 1824 को टंकारा (गुजरात) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम मूल शंकर तिवारी था। स्वामी जी के पिता ‘अंबा शंकर तिवारी‘ एक नौकरी पेशा व्यक्ति थे, तथा उनकी माता जी का नाम अमृत बाई था।


नाममहर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती
जन्म नाममूलशंकर तिवारी
जन्म12 फरवरी 1824 टंकारा, गुजरात
माता-पिताअमृत बाई – अंबाशंकर तिवारी
धर्मसनातन धर्म (हिन्दू)
गुरु/शिक्षकविरजानन्द
कार्य-क्षेत्रस्वतंत्रता सेनानी, समाज-सुधारक, धर्मगुरु
उपलब्धिआर्य समाज के संस्थापक, समाज सुधारक, 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान
मृत्यु30 अक्टूबर 1883 अजमेर, राजस्थान

 

महाशिवरात्रि पर घटी इस घटना से बदला स्वामी जी का जीवन:

स्वामी दयानंद सरस्वती जी शुरू से ही अपने पिता का कहना मानते थे, क्योंकि वह एक ब्राह्मण थे इसीलिए उनके परिवार में हमेशा धार्मिक अनुष्ठान किए जाते थे। एक बार की बात है स्वामी जी के पिताजी ने उनसे महाशिवरात्रि का उपवास रख विधि विधान के साथ रात्रि जागरण व्रत करने को कहा।

पिताजी के कहे अनुसार मूल शंकर (स्वामी जी) ने उपवास रखा और उनका पूरा परिवार रात्रि जागरण के लिए एक मंदिर में ठहरा, जहां रात्रि में उनके परिवार के सभी सदस्य सो गए, परंतु वह जागते रहे और यह प्रतीक्षा करते रहे कि कब भगवान आएंगे और इस प्रसाद को ग्रहण करेंगे।

काफी देर तक इंतजार के बाद अर्ध रात्रि में उन्होंने देखा कि भगवान पर चढ़ाया प्रसाद वहां रहने वाले कुछ चूहों की टोली खा रही थी। यह देख वह काफी आश्चर्यचकित हुए और उनके मन में यह विचार आया कि जब भगवान खुद पर चढ़ाए गए प्रसाद की रक्षा नहीं कर सकते तो वे मानवता की रक्षा क्या करेंगे? इस घटना ने उन्हें काफी प्रभावित किया।

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सन्यास और दयानंद सरस्वती बनना

स्वामी जी के बचपन का जीवन काफी अच्छे से बिता परंतु अचानक हुई उनकी बहन की मृत्यु ने उन्हें झकझोर कर रख दिया, और उनके मन में संसार के प्रति वैराग्य उत्पन्न हो गया। जिसके बाद, वे काशी जाकर पढना चाहते थे लेकिन उनके पिता ने उनका विवाह कराना चाहते थे इसलिए 21 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर बार छोड़ दिया।

कई वर्षों तक भटकने के बाद मूलशंकर तिवारी, स्वामी पूर्णानंद सरस्वती से मिले, जिन्होंने उन्हें सन्यासी की दीक्षा दी और 24 वर्ष की आयु में वे एक सन्यासी बन गए। उन्हें दयानंद सरस्वती नाम भी पूर्णानंद जी से ही मिला।

 

गुरू और गुरू दक्षिणा

ज्ञान और गुरू की तलाश में 13-14 सालों तक भटकने के बाद दयानंद सरस्वती जी स्वामी विरजानंद जी से मिले, वे अंधे थे लेकिन आत्मज्ञान का जीवित रूप थे। इसलिए स्वामी जी ने उन्हें अपना गुरु मानकर मथुरा में ही वैदिक एवं योग शास्त्रों के साथ-साथ ज्ञान की प्राप्ति भी की।

जब उन्होंने अपने गुरु स्वामी विरजानंद जी से गुरु दक्षिणा के विषय में पूछा तो उनके गुरूजी ने गुरु दक्षिणा के रूप में उनसे एक प्रण लेने को कहा, और बोले जब तक तुम जीवित रहेंगे तब तक वैदिक शास्त्रों का महत्व लोगों तक पहुंचाते रहोगे और इसे ही अपनी गुरु दक्षिणा बताया। स्वामी जी ने भी अपनी गुरु दक्षिणा के रूप में लिए गए संकल्प को बखूबी निभाया और ‘वेदों की ओर चलो‘ का नारा दिया।

उन्हें उनके गुरु द्वारा वेदों शास्त्रों की शिक्षा मिली थी, और उन्होंने संस्कृत, वेदों शास्त्रों एवं अन्य धार्मिक पुस्तकों का भी अध्ययन किया था।

 

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

स्वामी जी ने सन्यास लेने के बाद से ही अंग्रेजो के खिलाफ बोलना शुरु कर दिया, देश भ्रमण करने पर उन्हें यह पता चला कि लोगों के अंदर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ काफी ज्यादा आक्रोश है। इसलिए उन्होंने भारत के सभी वर्ग के लोगों को आजादी के लिए जोड़ना शुरु किया। उन्होंने इसकी शुरुआत साधु-संतों को जोड़कर की जिससे साधारण लोग प्रेरणा ले सकें।


1857 की क्रांति में स्वामी दयानंद सरस्वती जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा और उन्होंने ‘स्वराज का नारा‘ दिया, जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया।

 

आर्य समाज की स्थापना कब और कहाँ हुई थी?

महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने धर्म सुधार तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए 10 अप्रैल 1875 को मुंबई के गिरगांव में आर्य समाज की स्थापना की। जिसका आदर्श वाक्य ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्‘ है और इसका हिंदी अर्थ ‘विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाते चलो‘ है।

आर्यसमाज के सभी सिद्धांत और नियम लोगों के कल्याण के लिए बनाए गए है। आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य संसार की भलाई करना, अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति पर ध्यान देना है।

महर्षि दयानन्द सरस्वती जी को सभी वेदों का सटीक ज्ञान था, साथ ही वह अपने जीवन को पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य, सन्यास और कर्म सिद्धांत के चार स्तंभों पर खड़ा मानते थे।

 

स्वामी दयानंद जी की मृत्यु कब और कैसे हुई?

स्वामी जी को कुछ अंग्रेजी हुकूमत के षडयंत्रकारियों ने जहर देकर मारने की कोशिश की, परंतु योग पारंगत होने के कारण स्वामी जी को कुछ नहीं हुआ। हालंकि स्वामी जी ने 59 वर्ष की आयु में 30 अक्टूबर 1883 को दिवाली की शाम को अपने अंतिम शब्द “प्रभु! तूने अच्छी लीला की, आपकी इच्छा पूर्ण हो..” के साथ अपना शरीर त्याग दिया। बताया जाता है की जोधपुर में स्वामी जी को दूध में पीसा हुआ कांच मिलाकर दिया गया था, जो उनकी मौत का कारण बना।

 

 

स्वामी जी के सामाजिक योगदान

स्वामी जी 19वीं सदी के महान समाज सुधारकों में से एक है जिन्होंने उस समय फैली बुराइयों और अन्धविश्वासों को दूर करने का काफी प्रयास किया। साथ ही उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा, जैसी कुरीतियों का भी विरोध किया, हिंदू समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ डटकर खड़े रहे। इसी कारण उन्हें सन्यासी योद्धा भी कहा जाता है।

स्वामी जी ने आर्य समाज की स्थापना कर इन कुरीतियों को दूर करने की कोशिश की तथा हिंदू ही नहीं अपितु इस्लाम, ईसाई और दूसरे धर्मों में फैली कुरीतियों का भी खंडन किया।


Disclaimer: उपरोक्त लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है, HaxiTrick.com इसकी पुष्टि नहीं करता।

 

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