Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day 2020: गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस और उनके बारें में कुछ रोचक बातें
Shree Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day Date 2020: आज गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस (गुरुपूरब) है, गुरु तेग बहादुर सिखों के नौवें गुरु हैं और गुरु तेग बहादुर जी की पुण्यतिथि को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन के पीछे की कहानी काफी शर्मनाक और पराक्रम भरी तथा दिल दहला देने वाली है। बताया जाता हैं कि औरंगजेब ने इस्लाम स्वीकार न करने पर उनका सिर कटवा दिया था।
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Shree Guru Tegh Bahadur Shaheedi Diwas 2020 |
आइए अब आपको बताते हैं कि गुरु तेघ बहादुर कौन थे? श्री गुरु तेग बहादुर का असली नाम क्या था? वह सिखों के नौवें गुरु कैसे बने तथा श्री गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि को शहादत दिवस (Martyrdom Day) के रूप में कब और क्यों मनाया जाता है।
श्री गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस कब है? (Guru Teg Bahadur Martyrdom Day Date 2020)
वैसे तो गुरु तेग बहादुर 24 नवंबर 1675 को शहीद हुए लेकिन कुछ इतिहासकारों के मुताबिक वे 11 नवंबर 1675 को शहीद हुए माने जाते हैं। हर साल सिक्खों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी की पुण्यतिथि को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो 24 नवंबर को होता हैं। इस साल 2020 में श्री गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस 24 नवंबर को मंगलवार के दिन हैं।
श्री गुरु तेग बहादुर कौन थे? (About Guru Teg Bahadur In Hindi)
श्री गुरु तेग बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 को पंजाब के अमृतसर मुगल सल्तनत में हुआ वह सिक्खों के छठे गुरु गुरु हरगोविंद की 6 संतानों में से एक थे, उनका असली नाम 'त्याग मल' था और उनकी माता का नाम 'माता नानकी' था।
जब उनका जन्म हुआ तब अमृतसर सिक्खों की आस्था का केंद्र था, गुरु तेग बहादुर को सिख संस्कृति में तीरंदाजी और घुड़सवारी में प्रशिक्षित किया गया।
उन्हें वेदों उपनिषदों और पुराणों जैसे पुराने क्लासिक्स भी पढ़ाए गए।
श्री गुरू तेग बहादुर का विवाह 3 फरवरी 1633 को 'माता गुजरी' के साथ हुआ।
वह हमेशा से ही लंबे समय तक एकांत और चिंतन के मंत्र को प्राथमिकता देते थे, 1946 में उनके पिता गुरु हरगोबिंद की मृत्यु नजदीक आने पर गुरु हरगोबिंद अपनी पत्नी नानकी के साथ उनके पैतृक गांव बकाला, अमृतसर (पंजाब) में चले गए, साथ ही गुरु तेग बहादुर और उनकी पत्नी माता गुजरी भी गए।
गुरु हरगोविंद जी की मृत्यु के बाद गुरु तेग बहादुर अपनी पत्नी और मां के साथ बकाला में ही रहते रहे, वह शुरू से ही वैरागी जैसा जीवन जीते थे लेकिन वह बैरागी नहीं थे। उन्होंने अपनी परिवारिक जिम्मेदारियों में हिस्सा लिया और उन्होंने बकाला के बाहर का भी दौरा किया।
गुरु तेग बहादुर जी के घर एक पुत्र श्री गुरु गोविंद राय (सिंह जी) का जन्म हुआ और उन्होंने आनंदपुर साहिब नामक नगर बसाया और वहीं रहने लगे।
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क्यों कहलाते हैं ये ‘हिंद दी चादर’
गुरु तेग बहादुर की मुगल बादशाह औरंगजेब से सांघातिक विरोध की शुरुआत कश्मीरी पंडितों को लेकर हुई। कश्मीरी पंडित मुगलों द्वारा जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन के जुल्म सह रहे थे। उन्होंने गुरु तेग बहादुर से अपनी रक्षा की गुहार लगाई।
गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों पर औरंगजेब के जुल्मों से निजात दिलाने के लिए, (जो लोगों को मुस्लिम बनने पर विवश कर रहा था) हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने का निर्णय लिया।
इससे औरंगजेब बहुत नाराज हुआ। जुलाई 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने तीन अन्य शिष्यों के साथ अपने हत्यारे के पास स्वंय चलकर पहुंचे। इतिहासकारों की माने तो गुरु तेग बहादुर को औरंगजेब की फौज ने गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद उन्हें करीब तीन-चार महीने तक कैद कर रखा गया और पिंजड़े में बंद कर 04 नवंबर 1675 मुगल सल्तनत की राजधानी दिल्ली लाया गया।
औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर से इस्लाम स्वीकार करने को कहा, तो गुरु साहब ने कहा
सीस कटा सकते है केश नहीं।
उन्हें डराने के लिए उनके साथ गिरफ्तार किए गए भाई मति दास के शरीर को आरे से जिन्दा चीर दिया गया, भाई दयाल दास को खौलते हुए पानी में उबाल दिया गया और भाई सति दास को जिंदा कपास में लपेटकर जलवा दिया गया।
इसके बावजूद गुरु तेग बहादुर ने जब इस्लाम स्वीकार नहीं किया तो मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का सर कटवा दिया था।
क्योंकि वह चाहता था कि सिख गुरु इस्लाम स्वीकार कर ले लेकिन सिखों के नौवें गुरु हमेशा सिख धर्म के साथ ही रहना चाहते थे. इसीलिए जब उन्होंने इस्लाम स्वीकार करने से इनकार किया तो मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का सर कटवा दिया।
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श्री गुरु तेग बहादुर जी के बारें में कुछ रोचक तथ्य (Facts)
- मुगल बादशाह ने जिस जगह पर गुरु तेग बहादुर का सिर कटवाया था दिल्ली में उसी जगह पर आज शीशगंज गुरुद्वारा स्थित है।
- गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों की याद दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया।
- गुरू जी ने हिंद धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए, इसलिए आप जी को ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है।
- उन्हें “करतारपुर की जंग” में मुगल सेना के खिलाफ अतुलनीय पराक्रम दिखाने के बाद तेग बहादुर नाम मिला।
- 16 अप्रैल 1664 को श्री गुरु तेगबहादुर सिखों को नौवें गुरु बने।
- अपनी शहादत से पहले गुरु तेग बहादुर ने 8 जुलाई 1975 को गुरु गोविंद सिंह जी को सिखों का दसवां गुरु नियुक्त कर दिया था।
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अंतिम शब्द
अब तो आपको श्री गुरु तेग बहादुर कौन थे (About Shree Guru Tegh Bahadur in Hindi), श्री गुरु तेग बहादुर की पुण्य तिथि को शहीदी दिवस (Martyrdom Day) के रूप में कब और क्यों मनाया जाता है। यह सभी जानकारी आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताए, और इस जानकारी को जरूर शेयर करें।