राष्ट्रीय गणित दिवस 2024: श्रीनिवास रामानुजन जी की जयंती पर जानिए उनकी जीवनी

हर साल 22 दिसंबर को महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जयंती के उपलक्ष में उन्हें श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है।

National Mathematics Day 2024: राष्ट्रीय गणित दिवस कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है? (Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi)

Rashtriya Ganit Divas 2024: महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन जी के गणित क्षेत्र में अविस्मर्णीय कार्यों को देखते हुए उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) के रूप में उन्हें समर्पित किया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2012 में तत्कालीन मनमोहन सरकार द्वारा की गई थी। रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

इस साल नेशनल मैथमेटिक्स डे रविवार, 22 दिसंबर 2024 को मनाया जा रहा है, यह श्रीनिवास रामानुजन की 137वीं जन्म जयंती है। उनका जीवन काफी कठिनाईयों भरा रहा इसके बावजूद उन्होंने गणित को अपना बहूमूल्य योगदान दिया, उनके द्वारा दी गई थ्योरम और सिद्धांतों को लेकर आज भी बड़े-बड़े वैज्ञानिक चक्कर खा जाते हैं।

National Mathematics Day in Hindi
National Mathematics Day in Hindi
नेशनल मैथमेटिक्स डे के बारे में जानकारी:
नाम:राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day)
तिथि:22 दिसम्बर (वार्षिक)
शुरूआत:26 फरवरी 2012
पहली बार:22 दिसंबर 2012
सम्बंधित व्यक्ति:श्रीनिवास रामानुजन

 

राष्ट्रीय गणित दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?

भारत में राष्ट्रीय स्तर पर महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के सम्मान में उनके जन्मदिन (22 दिसंबर) को प्रत्येक वर्ष ‘गणित दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य रामानुजन जी को श्रद्धांजलि देना और भारत को नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले सभी गणितज्ञों को सम्मानित करना तथा उनके योगदानों की सराहना करना है।

इसके आलावा मानवता के विकास में गणित के महत्व और विद्यार्थियों के भीतर बैठे इसके भय को दूरकर इसके प्रति रुचि जगाना भी इसका मकसद है। यह देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, इस दिन स्कूलों, कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न प्रतियोगिताओं और गणितीय प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाता हैं।


जहाँ 22 दिसंबर को भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस होता है, तो वहीं वैश्विक स्तर पर हर साल 14 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है।

 

नेशनल मैथमेटिक्स डे का इतिहास

भारत के 14वें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी ने वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष (Maths Year) नामित करते हुए 26 फरवरी 2012 को मद्रास विश्वविद्यालय में महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन जी की 125वीं जयंती के उद्घाटन समारोह के दौरान दिसंबर की 22 तारीख को राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) के रूप में मनाने की घोषणा की। जिसके बाद पहला गणित दिवस 22 दिसम्बर 2012 को मनाया गया और तभी से इसे हर साल मनाने की शुरुआत हुई।


भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में श्रीनिवास अयंगर रामानुजन की 75वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने और सम्मानित करने के लिए एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था। तो वहीं 2012 में गणित दिवस और रामानुजन को दर्शाता एक अन्य डाक टिकट जारी किया गया।

 

 

श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी (जन्म: 22 दिसंबर 1887 – मृत्यु: 26 अप्रैल 1920)

कोयंबटूर के ईरोड (तमिलनाडु) में एक गरीब दक्षिण भारतीय ब्राह्मण परिवार में 22 दिसंबर सन 1887 को जन्मे श्रीनिवास रामानुजन भारत के एक महान गणितज्ञ थे। उनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर और उनकी माता का नाम कोमलताम्मल था। अपने जन्म के शुरुआती 3 सालों में वह बोलना तक नहीं सीख पाए जिससे सबको यह चिंता हुई कि कहीं यह गूंगे तो नहीं।

स्कूल के शुरुआती दिनों में जब उनका स्कूल में दाखिला कराया गया तो उनका मन इस पारंपरिक शिक्षा में नहीं लगा, परंतु जब वह 10 वर्ष के थे, तब उन्होंने पूरे जिला में अपनी प्राइमरी परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए।

 

गणित में रुचि:

प्राइमरी शिक्षा लेने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने टाउन हाई स्कूल में एडमिशन लिया जहां उन्होंने अपने स्कूल के समय में ही कॉलेज के लेवल के गणित का अध्ययन कर लिया था, हाईस्कूल में गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक प्राप्त होने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति का लाभ और आगे की शिक्षा के लिए कॉलेज में एडमिशन भी मिला।

उनकी बचपन से ही गणित में गहरी रुचि थी, उन्होंने 12 साल की उम्र में ही त्रिकोणमिति (Trigonometry) में महारत हासिल कर ली थी।

परेशानी तब शुरू हुई जब वह अपने गणित प्रेम के कारण 11वीं की गणित के परीक्षा को छोड़ बाकी सभी विषयों में फेल हो गए, जिससे उन्हें छात्रवृत्ति मिलनी भी बंद हो गई, इसके बाद उन्होंने 1960 में दोबारा 12वीं की प्राइवेट परीक्षा दी और फिर से फेल हो गए।

 

व्यावसायिक और गृहस्त जीवन

वे काफी गरीब परिवार से थे, इसीलिए विद्यालय छोड़ने के 5 वर्ष तक उन्हें भयंकर गरीबी का सामना करना पड़ा। परंतु उन्होंने इस भयंकर स्थिति में भी गणित के अपने शोध को जारी रखा और ट्यूशन देना शुरू किया जिससे उन्हें ₹5 महीने के मिलते थे और उसी से उनका गुजारा होता था।

वर्ष 1908 में इनका विवाह ‘जानकी‘ नामक कन्या से कर दिया गया, जिससे उनपर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया और वह नौकरी की तलाश में मद्रास चले गए। 12वीं की परीक्षा में फेल होने के कारण वहां उन्हें कोई भी नौकरी नहीं मिली और उनका स्वास्थ्य भी खराब हो गया जिससे वे वापस अपने घर कुंभकोणम लौट आए।

 

छात्रवृत्ति का प्रबंध:

बीमारी ठीक होने के बाद जब वे वापस मद्रास गए और किसी के कहने पर वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर भी गणित के बहुत बड़े विद्वान थे जिसके फलस्वरूप उन्होंने रामानुज की प्रतिभा को पहचाना और उनके लिए जिलाधिकारी श्री राम चंद्र राव से कहकर ₹25 मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध कराया।

रामानुज ने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के दफ्तर में क्लर्क की नौकरी शुरू की। वहां काम का बोझ कम होने पर वह अपने गणित के शोध भी किया करते थे, इतना ही नहीं वह रात भर जागकर स्लेट पर अपने शोधों को लिखा करते थे और बाद में उन्हें एक रजिस्टर पर उतारते थे।

 

इंग्लैंड यात्रा और शोध:

प्रोफेसर हार्डी उस समय विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञ में से एक गिने जाते थे, रामानुज ने प्रोफेसर जी. एच. हार्डी के शोध कार्यों को पढ़ा और उनके एक अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर भी खोज निकाला। जिसके परिणामस्वरूप प्रोफेसर हार्डी ने उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया। परंतु धन की कमी और कुछ व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया।

हालांकि बाद में उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय से शोधवृत्ति मिलने के बाद और प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आर्थिक सहायता मिली। और जब वे लंदन पहुंचे तो उन्होंने इंग्लैंड के महान गणितज्ञ प्रोफ़ेसर जी. एच. हार्डी के साथ मिलकर कई शोध पत्र प्रकाशित किए। जिसके बाद उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय से B.A. की डिग्री भी मिल गई परंतु वहां के रहन-सहन और खान-पान के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया।


सन 1918 में रामानुजन को इंग्लैंड की प्रसिद्ध संस्था ‘रॉयल सोसाइटी’ का फेलो नामित किया गया। वे रॉयल सोसाइटी के इतिहास में सबसे कम आयु में सदस्यता पाने वाले व्यक्ति है। इतना ही नहीं रामानुजन ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी है।

 

अंतिम समय और मृत्यु:

लंदन से भारत लौटने के बाद उनका स्वास्थ्य ज्यादा ही गंभीर हो गया, वे क्षय रोग से ग्रसित थे, उस समय इसका कोई इलाज नहीं था। ऐसे में लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य के चलते उन्होंने 33 वर्ष की अल्पायु में ही 26 अप्रैल 1920 को अपने प्राण त्याग दिए, जो गणित जगत और भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। यह देश ही नहीं अपितु पूरा संसार उनके योगदानों को कभी भुला नहीं सकता।


विकिपीडिया के मुताबिक उन्होंने अपने जीवन में गणित के लगभग 3884 थ्योरम की गद्यावली की जिसमें से ज्यादातर प्रमेय सही साबित की जा चुकी हैं, उन्होंने गणित को खुद ही सीखा था।

वे अपने जीवन में अपनी कुलदेवी को काफी महत्व देते थे, बताया जाता है, वह रात को सोते-सोते एकदम से जाग जाते थे और एक स्लेट पर ही प्रमेय और सूत्रों को लिखने लगते थे। उनके द्वारा तैयार किया गया प्रमेय और सूत्रों का रजिस्टर आज भी बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के लिए अनसुलझी पहेली है।

उनकी इसी गणित लगन शैली ने उन्हें विश्व का महान इंसान और गणितज्ञ बनाया, इनका जीवन हमारे लिए काफी प्रेरणादायक (Motivational) है। अगर आपको भी उनके जीवन और इस लेख से कुछ प्रेरणा मिली तो इस लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर करके आप इसे दुसरो तक भी पहुंचाए।

 

वर्ष 2015 में रिलीज हुई फिल्म ‘The Man Who Knew Infinity‘ रामानुजन के जीवन पर आधारित थी। यह हॉलीवुड मूवी रॉबर्ट केनिगेल द्वारा रामानुजन की बायोग्राफी पर लिखी गई एक किताब ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी: अ लाइफ ऑफ द जीनियस रामानुजन’ से प्रेरित थी।