National Mathematics Day 2020: राष्ट्रीय गणित दिवस कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है? Srinivasa Ramanujan in Hindi
Rashtriya Ganit Divas २०२०: भारत में गणित के विद्वानों की कमी नहीं है, ऐसे ही महान गणितज्ञों में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और श्रीनिवास रामानुजन भी शामिल हैं। भारत के इन महान विद्वानों ने भारत में ही नहीं अपितु दुनिया भर में अपनी महानता का लोहा मनवाया।
आज हम आपको ऐसे ही भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन Srinivasa Ramanujan (22 Dec 1887 - 26 Apr 1920) के बारे में बताने जा रहे है। जिनके जन्मदिन को भारत में (राष्ट्रीय गणित दिवस) National Mathematics Day के रूप में उन्हें समर्पित किया जाता है।
इनका जीवन काफी कठिनाईयों भरा रहा, और गणित को अपना बहूमूल्य योगदान दिया, उनके द्वारा दी गई थ्योरम और सिद्धांतों को लेकर आज भी वैज्ञानिक चक्कर खा जाते हैं।
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National Mathematics Day in Hindi |
आइए अब आपको नेशनल मैथमेटिक्स डे 2020 तथा महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन कौन थे? के बारे में भी आपको बताते है।
राष्ट्रीय गणित दिवस कब मनाया जाता है?
महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिन को सेलिब्रेट करने के लिए हर साल 22 दिसंबर को देशभर में 'राष्ट्रीय गणित दिवस' (National Mathematics Day) के रूप में मनाया जाता है।
इसका मुख्य उद्देश्य भारत के महान गणितज्ञों को श्रद्धांजलि देना तथा उनके द्वारा किए गए योगदानों और भारत को नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए उनका धन्यवाद करना है। ताकि भारत में लोग गणित के महत्व को समझ सके।
यह देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न तरीकों से मनाया है। इस दिन स्कूलों, कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न प्रतियोगिताओं और गणितीय प्रश्नोत्तरी का आयोजन किया जाता हैं।
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National Mathematics Day का इतिहास:
भारत के 14वें प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जी ने साल 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष (Maths Year) के रुप में मनाते हुए 26 फरवरी 2012 को मद्रास विश्वविद्यालय में भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की 125वीं वर्षगांठ के समारोह उद्घाटन के दौरान 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) के रूप में मनाने की घोषणा की।
तभी से हर साल 22 दिसंबर को यह दिवस मनाया जाता है। जिसे पहले बार 22 दिसम्बर 2012 को मनाया गया था।
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गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन कौन थे? (Information about Srinivasa Ramanujan in Hindi)
कोयंबटूर के ईरोड (तमिलनाडु) में एक गरीब दक्षिण भारतीय ब्राह्मण परिवार में 22 दिसंबर सन 1887 को जन्मे श्रीनिवास रामानुजन भारत के एक महान गणितज्ञ थे।
श्रीनिवास रामानुजन के पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर और उनकी माता का नाम कोमलताम्मल था। अपने जन्म के शुरुआती 3 सालों में वह बोलना तक नहीं सीख पाए जिससे सबको यह चिंता हुई कि कहीं यह गूंगे तो नहीं।
स्कूल के शुरुआती दिनों में जब उनका स्कूल में दाखिला कराया गया तो उनका मन इस पारंपरिक शिक्षा में नहीं लगा, परंतु जब वह 10 वर्ष के थे, तब उन्होंने पूरे जिला में अपनी प्राइमरी परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए।
गणित में थी गहरी रुचि:
आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने टाउन हाई स्कूल में एडमिशन लिया जहां उन्होंने अपने स्कूल के समय में ही कॉलेज के लेवल के गणित का अध्ययन कर लिया था, हाईस्कूल में गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक प्राप्त होने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति का लाभ और आगे की शिक्षा के लिए कॉलेज में एडमिशन भी मिला।
उनकी बचपन से ही गणित में गहरी रुचि थी, उन्होंने 12 साल की उम्र में ही त्रिकोणमिति (Trigonometry) में महारत हासिल कर ली थी।
विकिपीडिया के मुताबिक उन्होंने अपने जीवन में गणित के लगभग 3884 थ्योरम की गद्यावली की जिसमें से ज्यादातर प्रमेय सही साबित की जा चुकी हैं, उन्होंने गणित को खुद ही सीखा था।
लेकिन परेशानी तब शुरू हुई जब वह अपने गणित प्रेम के कारण 11वीं की गणित के परीक्षा को छोड़ बाकी सभी विषयों में फेल हो गए, जिससे उन्हें छात्रवृत्ति मिलनी भी बंद हो गई, इसके बाद उन्होंने 1960 में दोबारा 12वीं की प्राइवेट परीक्षा दी और फिर से फेल हो गए।
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व्यावसायिक जीवन
वे काफी गरीब परिवार से थे, इसीलिए विद्यालय छोड़ने के 5 वर्ष तक उन्हें भयंकर गरीबी का सामना करना पड़ा।
परंतु उन्होंने इस भयंकर स्थिति में भी गणित के अपने शोध को जारी रखा और ट्यूशन देना शुरू किया जिससे उन्हें ₹5 महीने के मिलते थे जिससे उसका गुजारा होता था।
साथ ही 1908 में इनकी शादी 'जानकी' से कर दी गई, जिससे उन्हें जिम्मेदारियों को संभालना पड़ा और वह नौकरी की तलाश में मद्रास गए, 12वीं की परीक्षा में फेल होने के कारण वहां उन्हें कोई भी नौकरी नहीं मिली और उनका स्वास्थ्य भी खराब हो गया जिससे वे वापस अपने घर कुंभकोणम लौट आए।
छात्रवृत्ति का प्रबंध: बीमारी ठीक होने के बाद वापस मद्रास गए और किसी के कहने पर वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले, अय्यर भी गणित के बहुत बड़े विद्वान थे जिसके फलस्वरूप उन्होंने रामानुज की प्रतिभा को पहचाना और उनके लिए जिलाधिकारी श्री राम चंद्र राव से कहकर ₹25 मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध कराया।
रामानुज ने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के दफ्तर में क्लर्क की नौकरी शुरू की।
वहां काम का बोझ कम होने के कारण वह अपने गणित के शोध भी किया करते थे. इतना ही नहीं वह रात भर जागकर स्लेट पर अपने शोधों को लिखा करते थे और बाद में उन्हें एक रजिस्टर पर उतारते थे।
इंग्लैंड यात्रा और शोध
प्रोफेसर हार्डी उस समय विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञ में से एक गिने जाते थे, उस समय रामानुज ने प्रोफेसर जी. एच. हार्डी के शोध कार्यों को पढ़ा और उनके एक अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर भी खोज निकाला। जिसके कारण प्रोफेसर हार्डी ने उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया।
परंतु धन की कमी और कुछ व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया।
परंतु बाद में उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय से शोधवृत्ति मिलने के बाद और प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आर्थिक सहायता मिली।
लंदन में रामानुजन:
जब वह लंदन पहुंचे तो उन्होंने इंग्लैंड के महान गणितज्ञ प्रोफ़ेसर जी. एच. हार्डी के साथ मिलकर कई शोध पत्र प्रकाशित किए, जिसके बाद उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय से B.A. की डिग्री भी मिल गई परंतु वहां के रहन-सहन और खान-पान के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया।
सन 1918 में रामानुजन को इंग्लैंड की प्रसिद्ध संस्था 'रॉयल सोसाइटी' का फेलो नामित किया गया। वे रॉयल सोसाइटी के इतिहास में सबसे कम आयु में सदस्यता पाने वाले व्यक्ति है। इतना ही नहीं रामानुजन ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी है।
भारत लौटने के बाद उनका स्वास्थ्य ज्यादा ही गंभीर हो गया, वे क्षय रोग से ग्रसित थे, उस समय इसका कोई इलाज नहीं था।
ऐसे में लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य के चलते उन्होंने 33 वर्ष की अल्पायु में ही 26 अप्रैल 1920 को अपने प्राण त्याग दिए, जो गणित जगत और भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।
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अंतिम शब्द
भारत के महान गणितज्ञ रामानुजन के योगदानों को भारत और यह विश्व कभी भुला नहीं सकता, वे अपने जीवन में अपनी कुलदेवी को काफी महत्व देते थे, उनके द्वारा तैयार किया गया प्रमेय और सूत्रों का रजिस्टर आज भी बड़े-बड़े वैज्ञानिकों के लिए अनसुलझी पहेली है।
बताया जाता है, वह रात को सोते सोते एकदम से जाग जाते थे और एक स्लेट पर ही प्रमेय और सूत्रों को लिखने लगते थे।
श्रीनिवास रामानुजन के इसी गणित लगन शैली ने उन्हें विश्व का महान इंसान और गणितज्ञ बनाया, इनका जीवन हमारे लिए काफी प्रेरणादायक (Motivational) है।
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