सुभाष चंद्र बोस जयंती 2024: पराक्रम दिवस पर जानिए Netaji Subhash Chandra Bose की Biography

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती प्रत्येक वर्ष 23 जनवरी को पराक्रम दिवस (Parakram Diwas) के रूप में मनाई जाती है। आइए इस ख़ास मौके पर उनकी गौरवमय जीवनी, रहस्यमय मौत और उनके विचारों के बारे में जानने का प्रयास करते है।

सुभाष चंद्र बोस जयंती 2024 कब है? क्यों मनाते है पराक्रम दिवस? (Subhash Chandra Bose History & Biography in Hindi)

Subhash Chandra Bose Jayanti 2024 Date: भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त और आजाद हिंद फ़ौज के सुप्रीम कमांडर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती हर साल 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जाती है। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को ब्रिटिश शासन में भारत के कटक, ओडिशा में हुआ था।

इस साल 2024 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 127वीं जयंती मंगलवार, 23 जनवरी 2024 को मनायी जा रही है। इसके साथ ही हर साल 18 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि के मौके पर श्रद्धांजलि अर्पित कर उन्हें याद किया जाता है। आइए अब Azad Hind Fauj (INA) के सर्वोच्च कमांडर सुभाष चंद्र बोस की जयंती (बर्थडे एनिवर्सरी) पर हम उनकी जीवनी (कहानी) और उनके कोट्स (Quotes) पर प्रकाश डालते है।

Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti
Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti

Subhash Chandra Bose Information in Hindi
नाम:नेताजी सुभाषचंद्र बोस
जन्म:23 जनवरी 1897 (कटक, ओडिशा)
मृत्यु:18 अगस्त 1945 (ताइपे, ताइवान)
पत्नी:एमिली शेंकल
बच्चे:अनिता बोस फाफ

 

आज 23 जनवरी को शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे (बाल ठाकरे) की जयंती भी है।

 

सुभाष चंद्र बोस जयंती पर पराक्रम दिवस क्यों मनाते है?

19 जनवरी 2021 को एक उच्चस्तरीय कमेटी की बैठक में भारत सरकार द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती से हर साल उनके जन्मदिन यानि 23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस‘ (Parakram Diwas) के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई। इस दिवस की शुरुआत राष्ट्र के लिए नेताजी की अदम्य भावना और निस्वार्थ सेवा का सम्मान करने के मकसद से की गयी है।

हालंकि इसका उद्देश्य देश के लोगों विशेषकर युवाओं को प्रेरित कर उनमें देशभक्ति की भावना का संचार करना है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा जैसे उनके नारे वास्तव में उनकी वीरता और अदम्य साहस का प्रमाण देते है।

 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जीवन परिचय (Subhash Chandra Bose Biography)

नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी का जन्म ब्रिटिश भारत हुकूमत के समय ओडिशा के कटक शहर में ‘23 जनवरी 1897‘ को एक हिंदू कायस्थ परिवार में नौवीं संतान के रूप में हुआ। उनके पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस‘ था, वे कटक के मशहूर वकील और बंगाल विधानसभा के सदस्य भी थे तथा उनकी माता का नाम ‘प्रभावती‘ था।

 

पढ़ाई-लिखाई (शिक्षा):

सुभाष चंद्र बोस ने अपनी प्राथमिक शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेण्ट स्कूल से पूरी की, जिसके बाद 1901 में उन्होंने आगे की पढ़ाई हेतु रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में एडमिशन लिया और 1915 में उन्होंने इंटर की परीक्षा में खराब स्वास्थ्य के कारण द्वितीय स्थान प्राप्त किया।

जिसके बाद उन्होंने 1916 में दर्शनशास्त्र (ऑनर्स) की पढ़ाई के लिए प्रेसीडेंसी कॉलेज B.A में नाम लिखवाया।

हालांकि उन्हें अध्यापकों और छात्रों के बीच हुए झगड़े में छात्रों के नेतृत्व के कारण 1 साल के लिए निलंबित कर दिया गया और उनकी परीक्षा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।

जिसके बाद उन्होंने बड़ी जद्दोजहद से स्कॉटिश चर्च कॉलेज में एडमिशन लिया और 12वीं के अंकों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने खूब मन लगाकर पढ़ाई की और फलस्वरूप 1919 में B.A की परीक्षा में वे प्रथम श्रेणी अंक प्राप्त हुए और कोलकाता विश्वविद्यालय में उन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ।


सुभाष चंद्र बोस जयंती 2024 की शुभकामनाएं
सुभाष चंद्र बोस जयंती 2024 की शुभकामनाएं

 

सेना में भर्ती और ICS परीक्षा:

सुभाष चंद्र बोस जी की आंखों में दिक्कत होने के कारण उन्हें 49वीं बंगाल रेजिमेंट की भर्ती में अयोग्य घोषित कर दिया गया, परंतु उन्होंने टेरिटोरियल आर्मी की परीक्षा दी और रंगरूत के रूप में फोर्ट विलियम सेनालय में शामिल हो गए।

आईसीएस में प्रवेश:
सुभाष चंद्र बोस जी के पिता की दिली इच्छा थी कि उनका बेटा सुभाष ICS (फुल फॉर्म: इंपिरियल सिविल सर्विस) में जाए, परंतु उनकी उम्र के हिसाब से उनके पास परीक्षा पास करने का केवल एक चांस था और गहन विचार करने के बाद वे परीक्षा कि तैयारी के लिए 15 सितंबर 1919 को इंग्लैंड रवाना हो गए।

परंतु तैयारी के लिए उन्हें लंदन के किसी भी स्कूल में एडमिशन नहीं मिला जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास (ऑनर्स) की परीक्षा के अध्ययन हेतु किट्स विलियम हॉल में प्रवेश लिया, वहां एडमिशन लेकर उन्होंने आईसीएस की तैयारी शुरू की और साल 1920 में प्रायरिटी लिस्ट में उन्हें चौथा स्थान प्राप्त हुआ।

 

देश सेवा का भाव

उनके हृदय और मस्तिष्क में कहीं ना कहीं स्वामी विवेकानंद जी एवं महर्षि अरविंद घोष जी के आदर्श विचारों ने अपना घर बनाया हुआ था, जिसके कारण उनका मन अंग्रेजों की गुलामी करने से नकार रहा था, इसलिए उन्होंने 22 अप्रैल 1921 को अपना त्यागपत्र दे दिया, आपको बता दें ICS उस समय Imperial Civil Service के नाम से जानी जाती थी जो ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत थी।

 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस 9 जुलाई 1921 में भारत की आजादी के लिए तेज होती गतिविधियों की खबर पाकर भारत आए और मुंबई में गांधी जी से मुलाकात की। वे स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान अपने जीवनकाल में कुल 11 बार जेल गए।

आंदोलनों में लिया हिस्सा:
गांधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में जब दास बाबू इस आंदोलन का नेतृत्व बंगाल से कर रहे थे, तब सुभाष बोस ने इस आंदोलन में सहभागिता दी।

1927 में साइमन कमीशन के भारत आने के विरोध में जब काले झंडे दिखाए गए तो उस समय कोलकाता से सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा साइमन कमीशन के विरोध का नेतृत्व किया गया।

Jai Hind Slogan by Subhash Chandra Bose
Jai Hind Slogan by Subhash Chandra Bose

 

नेताजी की स्वतंत्रता नीति और शक्तिशाली देशों का साथ:

सुभाषचंद्र बोस के अनुसार विश्व में अंग्रेजों के दुश्मनों के साथ लड़कर भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी दिलाई जा सकती है, और ‘दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है‘ इसी निति पर चलते हुए वे यूरोप (जर्मनी) में हिटलर से भी मिले जो इंग्लैंड का एक तरह से दुश्मन ही था।

इसके आलावा उनका यह भी मानना था की स्वतंत्रता हासिल करने के लिए कूटनीति और सैनिकों का साथ होना भी आवश्यक है।


आजादी के लिए सुभाष चन्द्र बोस की विश्व यात्रा:

सुभाष चंद्र बोस ने भारत की आजादी के लिए विश्व स्तर पर भ्रमण किया और कई शक्तिशाली लोगो से भी मिले, 29 मई 1942 को उन्होंने जर्मनी के सर्वोच्च लीडर हिटलर से मुलाकात की, परंतु हिटलर की तरफ से सहायता की उम्मीद ना दिखाई देने पर वे सीधे जापान के ओर बढ़े और पानी के रास्ते द्वितीय विश्व युद्ध के समय इंडोनेशिया के बंदरगाह पहुंचे और ‘जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जनरल हिदेकी तोजो‘ ने उन्हें सहयोग देने का भरोसा दिया।


Subhash Chandra Bose Thoughts in hindi
Subhash Chandra Bose Thoughts in hindi

 

आजाद हिंद फौज की स्थापना:

सुभाषचंद्र बोस जी का विश्वास था कि आजादी के लिए हमें सैन्य बलों की जरूरत पड़ेगी, इसीलिए उन्होंने ‘21 अक्टूबर 1943‘ को देश की आजादी के लिए जापान के सहयोग से ‘आजाद हिंद फौज‘ का गठन किया, और वे इसके प्रधान सेनापति भी रहे।

जापान का साथ पाकर उन्होंने अपनी सेना (आजाद हिंद फौज) और जापानी सेना को एकजुट कर भारत में अंग्रेजों पर आक्रमण किया और अंग्रेजी हुकूमत से ‘अंडमान और निकोबार दीप’ को आजाद कराया।

परंतु द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान पर गिराए गए परमाणु बमों ने जापान को तबाह कर दिया, हालात को देखते हुए उन्होंने रूस की सहायता लेने का फैसला किया परंतु यात्रा के दौरान ही उनकी मौत हो गयी। (आगे इस बारे में विस्तार से बताया है )

 

महात्मा गाँधी और सुभाष बोस के विचार

सुभाष चन्द्र बोस गांधीजी के अहिंसावादी विचारों से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे, परंतु उन्होंने ही महात्मा गांधी को सर्वप्रथम ‘राष्ट्रपिता‘ कहकर संबोधित किया था।

सुभाषचंद्र बोस जी को कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में साल 1938 में महात्मा गांधी जी द्वारा ही चुना गया परंतु महात्मा गांधी जी को सुभाष चंद्र बोस जी के काम करने का तरीका पसंद नहीं आया।

हालांकि 1939 में जब दोबारा अध्यक्ष पद के चुनाव हुए तो गांधीजी के विरोध के बावजूद सुभाष बोस ने यह चुनाव जीता और अध्यक्ष बने परंतु गांधीजी के विरोध के कारण उन्होंने 29 अप्रैल 1939 को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

 

सुभाषचंद्र बोस का विवाह कब हुआ? (पत्नी और बेटी)?

सुभाष चंद्र बोस का विवाह 1934 में ऑस्ट्रिया की महिला टाइपिस्ट एमिली शेंकल (Emilie Schenkl) से हिंदू रीति रिवाज के साथ संपन्न हुआ। उनकी एक बेटी भी है जिनका नाम ‘अनिता बोस फाफ’ है।

यह उस समय की बात है जब सुभाष बोस ऑस्ट्रिया में अपना इलाज करा रहे थे और अपनी बुक के लिए उन्हें एक अंग्रेजी टाइपिस्ट की जरूरत थी, इस तरह उनकी मुलाकात एमिली शेंकल से हुई।

 

सुभाष बोस को नेताजी की उपाधि कैसे मिली?

जब सुभाष बोस ने जर्मनी में आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की और इसी रेडियो पर अपने भाषण में गांधीजी को संबोधित करते हुए, उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य बताया तब उन्होंने गांधी जी को ‘राष्ट्रपिता‘ कहकर संबोधित किया।

इसके बाद महात्मा गांधी जी ने भी उन्हें ‘नेताजी‘ कहकर सम्मान दिया तभी से सुभाषचंद्र बोस जी को नेताजी की उपाधि मिली और वह नेताजी के नाम से जाने जाते हैं।

 

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कब और कैसे हुई?

जब नेताजी 18 अगस्त 1945 को जापान से हवाई यात्रा के लिए रवाना हुए तो विमान के जरिए सफ़र करने के दौरान ही ताइवान की राजधानी ताइपे में यह दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उनकी रहस्यमय मौत हो गयी।

हालांकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है और उनके परिवारजनों के मानना है कि साल 1945 में उनकी मृत्यु नहीं हुई थी वे उसके बाद रूस में नज़रबन्द थे।

बताया तो यह भी जाता है कि वे उत्तरप्रदेश के फैज़ाबाद जिले में गुमनामी बाबा बनकर कई वर्षो तक रहे और 1985 में बाबा की मृत्यु के बाद उनके पास से नेताजी से सम्बन्धित कई चीज़े मिली।

हालाँकि भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की मानें तो उनका भी यही कहना है कि नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ही हुई थी।

 

 

सुभाष चंद्र बोस जयंती पर सुविचार और नारे (Slogan, Thoughts & Quotes):

चलो दिल्ली‘ का नारा नेताजी ने अपनी आजाद हिंद फौज की सेना को प्रेरित करने के लिए दिया। यहाँ सुभाष चंद्र बोस जयंती पर उनके द्वारा दिए गए कुछ नारे और उनकी विचारधारा से प्रभावित कोट्स (उद्धरण) और शायरी दी गयी है।

  1. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।

  2. इतिहास गवाह है, कोई भी वास्तविक परिवर्तन चर्चाओं से कभी नहीं हुआ।


  3. Subhash Chandra Bose Quotes in hindi
    Subhash Chandra Bose Quotes in hindi

  4. दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है।

  5. जय हिंद

  6. चलो दिल्ली

आप सभी देशवासियों को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं!

 

 

अंतिम शब्द

नेताजी द्वारा देश के लिए गए कई फैसलों के दूरगामी परिणाम हुए, सुभाष बोस जी ने देश की आज़ादी के लिए दिलों-जान से कोशिश की और देश को स्वाधीनता की और अग्रसर किया।

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नोट: यह लेख विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध जानकारियों के आधार पर लिखा गया है HaxiTrick.Com इसकी पुष्टि नहीं करता।