बाल ठाकरे की जयंती और पूण्यतिथि 2023: कैसे हुई थी बालासाहेब की मृत्यु?

बालासाहेब ठाकरे की जन्म जयंती और पूण्यतिथि (Bal Thackeray Birth & Death Anniversary 2023)

बालासाहेब केशव ठाकरे (जन्म: 23 जनवरी 1926 – मृत्यु: 17 नवंबर 2012): शिवसेना के संस्थापक और अपने विवादित बयानों से चर्चाओं में बने रहने वाले बालासाहेब केशव ठाकरे की 17 नवम्बर 2012 को मृत्यु हो गयी थी। हर साल 23 जनवरी को उनकी जयंती और 17 नवम्बर को पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर श्रध्दांजलि अर्पित की जाती है।

बाल ठाकरे वैसे तो पेशे से एक कार्टूनिस्ट थे परन्तु उन्होंने राजनीतिक पार्टी ‘शिवसेना‘ का गठन किया और महाराष्ट्र में अपना प्रभाव कभी खत्म नहीं होने दिया। कट्टर हिन्दुवादी होने के कारण उनके चाहने वाले उन्हें “हिंदू हृदय सम्राट” भी कहते थे। हालांकि प्यार से लोग उन्हें बालासाहेब कहकर भी पुकारते थे।

Balasaheb Thackeray Birth Anniversary 2023
Balasaheb Thackeray Birth Anniversary 2023

आइए उनकी जन्म जयंती पर उनकी बायोग्राफी (जीवनी) पर प्रकाश डालने का प्रयास करते है, क्योंकि वे वास्तव में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे।

बाल ठाकरे का जीवन परिचय (Bal Thackeray Biography in Hindi)

बाल ठाकरे का पूरा नाम बालासाहेब केशव ठाकरे था, उनका जन्म 23 जनवरी 1926 को पुणे (ब्रिटिश भारत) में हुआ। उनके पिता का नाम केशव सीताराम ठाकरे और माता का नाम रामा-बाई ठाकरे था।

उन्होंने अपना करियर एक कार्टूनिस्ट के रूप में शुरू किया था, वह अपने करियर के शुरुआती दिनों में अंग्रेजी अखबरों के लिए कार्टून बनाते थे। बाद में सन् 1960 में उन्होंनें अपना खुद का एक स्वतंत्र साप्ताहिक अखबार निकाला जिसका नाम ‘मार्मिक‘ था।

वे अपने पिता से काफी प्राभावित थे इसलिए वे अक्सर अपने पिता केशव सीताराम ठाकरे के राजनीतिक दर्शन को महाराष्ट्र में प्रचारित एवं प्रसारित किया करते थे।

 

राजनीतिक जीवन और शिवसेना की स्थापना:

नियति को कुछ और मंजूर होने के कारण 19 जून सन् 1966 में उन्होंने ‘शिवसेना‘ नाम की एक कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी संगठन की स्थापना की। हालांकि उन्हे और उनकी इस पार्टी को शुरूआती दौर में कुछ खास सफलता नहीं मिली। लेकिन अंतत: 1995 में भाजपा-शिव सेना के गठबंधन से महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार बनी।

हालांकि 2006 में उनके भतीजे राज ठाकरे ने बेटे उद्धव ठाकरे को अतिरिक्त महत्व दिए जाने से नाराज होकर शिवसेना को छोड़ दिया और अपनी अलग पार्टी ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण‘ बना ली।

बाल ठाकरे के बयानों से आप भली-भांति परचित होंगे, उनके उत्तेजित बयानों के कारण ही उन पर सैंकड़ों की संख्या में मुकद्दमे दर्ज किए गए थे।

 

कब और कैसे हुई बाळ ठाकरे की मृत्यु?

बाला साहेब का स्वास्थ्य निरंतर खराब होने और सांस लेने में हो रही कठिनाई के चलते उन्हें 25 जुलाई 2012 को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया। अंततः वे अपनी बीमारी से लड़ने में असफल रहे और उन्होंने 86 वर्ष की आयु में 17 नवंबर 2012 को मुंबई में अपने मातुश्री आवास पर दोपहर के लगभग 3:30 बजे अंतिम सांस ली। उन्होने अपने एक मराठी अखबार में अपनी मृत्यु से कुछ दिन पूर्व ही लिखा था।

आजकल मेरी हालत चिंताजनक है किंतु मेरे देश की हालत मुझसे अधिक चिंताजनक है, ऐसे में भला मैं चुप कैसे बैठ सकता हूं।


 

उनके देहांत के बाद हुए विवाद

बाल ठाकरे जी कोई आम नेता नहीं थे वह किसी के लिए भगवान तो किसी के लिए यमराज भी थे। 17 नवंबर 2012 को कार्डियक अरेस्ट के परिणामस्वरूप ठाकरे की मृत्यु के बाद मुम्बई तुरंत एक आभासी पड़ाव में आया।

उनकी मौत की खबर फैलने के साथ ही दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद हो गए और पूरे महाराष्ट्र राज्य में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया। मुंबई में पुलिस की एक बड़ी टूकडी, राज्य रिजर्व पुलिस बल की 15 इकाइयाँ और रैपिड एक्शन फोर्स की तीन टुकड़ियों को तैनात किया गया।

बताया यह भी जाता है कि शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने ही कुछ स्थानों पर दुकानें बंद करने के लिए मजबूर किया। उस समय प्रधानमंत्री पद पर विराजमान ‘डॉ. मनमोहन सिंह‘ ने लोगों से शांत रहने का आह्वान किया और ठाकरे के “मजबूत नेतृत्व” की प्रशंसा की।

हालांकि उन्हें शिवाजी पार्क में एक राजकीय सम्मान दिया गया, जिससे कुछ विवाद पैदा हुए। 1920 में हुए बाल गंगाधर तिलक के बाद यह शहर का पहला सार्वजनिक अंतिम संस्कार था।

 

बाला साहेब ठाकरे का अंतिम संस्कार और विवाद

बाल ठाकरे के शरीर को 17 नवंबर को शिवाजी पार्क में ले जाया गया। उनके अंतिम संस्कार में कई शोकियों ने भाग लिया, हालांकि गिनती के कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं थे। लेकिन मीडिया स्रोतों के मुताबिक़ सीमा लगभग 1 मिलियन, से 1.5 मिलियन और लगभग 2 मिलियन से अधिक दर्ज की गई है।

दाह संस्कार अगले दिन 18 नवंबर को हुआ, जहाँ उनके पुत्र उद्धव ने चिता को अग्नि दी। और इस कार्यक्रम का राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों पर सीधा प्रसारित किया गया था।

कोई आधिकारिक पद नहीं होने के बावजूद, उन्हें 21-बंदूकों की सलामी दी गई, जो एक दुर्लभ सम्मान था। बिहार विधानसभा के दोनों सदनों ने भी श्रद्धांजलि दी।

अंतिम संस्कार के खर्चों ने तब और विवाद पैदा कर दिया जब मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि बीएमसी ने करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल किया था। इन रिपोर्टों के जवाब में, पार्टी ने बाद में निगम को 500,000 रुपये का चेक भेजा।


डिस्क्लेमर: यह लेख इंटरनेट पर उपलब्ध विभिन्न स्रोतों की मदद से साझा किया गया है HaxiTrick.com इसकी पुष्टि नहीं करता।

👇 इस जानकारी को शेयर करें 👇