संत गुरु रविदास जयंती 2021: कब और क्यों मनाते है? और Sant Ravidas की Biography हिंदी में
Sant Ravidas Jayanti 2021: आपने 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' वाली कहावत तो जरूर सुनी होगी आज उन्हीं महान संत गुरु रविदास जी की जयंती है जिसे भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
इस साल 2021 में संत रविदास जी की जयंती 27 फरवरी को शनिवार के दिन मनाई जा रही है।
यह दिन लोगों को शांति, सच्चाई और भाईचारे का संदेश देता है, भारत की एक बड़ी आबादी संत रविदास जी को भगवान के समान मानती और पूजती हैं।
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Sant Guru Ravidas Jayanti 2021 In Hindi |
आज के इस लेख में हम आपको संत रविदास जी की जयंती (Sant Ravidas Jayanti 2021) पर संत रविदास जी कौन थे, उनकी जीवनी (बायोग्राफी), इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं।
गुरु रविदास जयंती कब और क्यों मनाते है? (Ravidas Jayanti 2021 Date)
हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को हर साल गुरु रविदास जी की जयंती मनाई जाती है, इस साल 2021 में 27 फरवरी को शनिवार के दिन संत रविदास जी की 644 वीं जयंती मनाई जा रही है।
इस मौके पर उनके उपासकों द्वारा सुबह नगर कीर्तन, सत्संग और लंगर आदि का आयोजन किया जाता है।
वे 15वीं शताब्दी के महान संत, कवि और ईश्वर के भक्त थे, उन्होंने मीरा बाई जैसी कृष्ण भक्त और सिकंदर लोधी जैसे शासकों और करोडो लोगों का उद्धार किया।
संत रविदास जी की जीवनी (Sant Ravidas Biography in Hindi)
संत शिरोमणि रविदास एक महान दार्शनिक, कवि, महान संत, भगवान के उपासक और भारत के महान समाज सुधारकों में से एक थे।
उनका जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास स्थित सीर गोवर्धन गांव में माघ की पूर्णिमा को संवत 1433 में हुआ उन्हें 'रैदास' नाम से भी जाना जाता है।
हालांकि उनके जन्म को लेकर सभी लोगों की अपनी अलग राय हैं कुछ लोगों के अनुसार आपका जन्म 1376-77 के दौरान हुआ तो वही कुछ कागजों में उल्लेख है की रविदास जी ने अपना जीवन 1450 से 1520 के बीच पृथ्वी पर बिताया। इनके जन्म स्थान को 'श्री गुरु रविदास जन्म अस्थान' के नाम से जाना जाता है।
संत रविदास जी के पिता का नाम 'संतोख दास' (रग्घु) था। चर्मकार कुल से होने के कारण वे चमड़े के जूते बनाने और मरम्मत करने का काम किया करते थे। आपकी माता जी का नाम 'कर्माबाई' (कलसा) था।
रविदास जी का विवाह 'लोना' नामक कन्या से हुआ। तथा इनकी दो संताने थी, पुत्र का नाम 'विजय दास' था और पुत्री का नाम 'रविदासिनी' था।
सिक्खों के पवित्र धर्म ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में रविदास जी के करीब 40 पद सम्मिलित किए गए हैं।
संत शिरोमणि रविदास जी के गुरू कौन थे?
संत रविदास जी के गुरु पंडित श्री शारदानंद जी थे, जिनसे उन्होंने बचपन से ही शिक्षा लेना आरंभ कर दिया था। परंतु बाद में ऊंच-नीच के कारण रविदास जी को उनकी पाठशाला में पढ़ने नहीं दिया गया, परंतु पंडित शारदानंद जी ने रविदास जी को व्यक्तिगत तौर पर पढ़ाना आरंभ किया।
रविदास जी शुरू से ही काफी होनहार और प्रतिभाशाली थे। उनके गुरु ने शुरू से ही उनमें एक अच्छा अध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक बनने की झलक देख ली थी।
कई स्थानों पर यह उल्लेख मिलता है कि स्वामी रामानंद जी ही संत रविदास और उनके गुरूभाई संत कबीर के गुरू थे, परन्तु इस बात का कोई आधिकारिक प्रमाण नही है की रामानंद ही उनके गुरू थे। कुछ जगहों पर पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी को उनका गुरु तो कुछ लोग गुरु नानक जी को संत रविदास जी का गुरु बताते हैं।
बताया तो यह भी जाता है कि श्री कृष्ण की अन्नय भक्त मीराबाई जब रामानंद जी के पास उनकी शिष्या बनने गयी तो उन्होंने उन्हें रविदास जी के पास जाने को कहा और रविदास जी ने मीराबाई को शिष्या के रूप में स्वीकार कर लिया।
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व्यवसायिक और सामाजिक जीवन:
संत रविदास जी अपने पिता के जूते बनाने के व्यवसाय में हाथ बटाया करते थे, परंतु वह साधु-संतों और फकीरों को नंगे पांव देख अक्सर उन्हें मुफ्त में जूते चप्पल दे दिया करते थे। जिससे नाराज होकर उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया।
घर से निकाले जाने पर उन्होंने एक कुटिया बनाई और जूते चप्पल की मरम्मत का काम शुरू किया।
इससे होने वाली आमदनी से अपना गुजर-बसर करने लगे और साधु संतों की संगत में अपना जीवन बिताने लगे। इनके अच्छे व्यवहार और इनके अंदर समाए ज्ञान के कारण लोग इनके आसपास रहने लगे।
रविदास जी के सामाजिक जीवन:
संत रविदास जी एक छोटी जाति से संबंध रखते थे जिसके कारण उनके साथ उस समय काफी भेदभाव किया जाता था। उनके साथ लोग जाति, धर्म और रंग के आधार पर भेदभाव करते थे।
परंतु कुछ लोग उन्हें भगवान द्वारा भेजे गए धर्म रक्षक के रूप में मानते थे ऐसे में उन्होंने इन सभी भेदभावों का डटकर मुकाबला किया।
अपनी तरफ से लोगों को यह समझाते थे कि इंसान जाति, धर्म या भगवान पर विश्वास के आधार पर नहीं जाना जाता। इंसान केवल अपने कर्मों से ही दुनिया में पहचाना जाता है।
रविदास जी की मृत्यु:
रविदास जी की मृत्यु का षड्यंत्र उनके दिन-प्रतिदिन बढ़ते अनुयायियों और भगवान के प्रति उनके प्रेम सद्भावना, मानवता और सच्चाई से जलने वाले कुछ ब्राह्मणों ने रचा। बताया जाता है कि रविदास जी के विरोधियों द्वारा एक सभा का आयोजन किया गया, और उस सभा में रविदास जी को भी बुलाया गया।
रविदास जी इन ब्राह्मणों की चाल से अच्छी तरह वाकिफ थे। जिससे वह तो बच जाते हैं लेकिन गलती से उनके मित्र भला नाथ को मार दिया जाता है।
गुरुजी के उपासको और अनुयायियों की माने तो रविदास जी ने अपने 120-126 वर्ष के शरीर को 1540 AD में वाराणसी में ही प्राकृतिक रूप से त्याग दिया। जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
संत रविदास जी की चमत्कारिक कथा:
रविदास जी और उनके गुरु शारदा नंद जी के बेटे में काफी अच्छी मित्रता थी एक बार की बात है जब दोनों लुका छुपी का खेल खेल रहे थे तो खेलते-खेलते रात हो गई। और दोनों ने अगले दिन पुनः इस खेल को जारी रखने का फैसला किया और सोने चले गए।
जब अगले दिन रविदास जी अपने मित्र के साथ खेलने पहुंचे तो पता चला कि उनके दोस्त की तो मृत्यु हो चुकी है।
यह सुनकर रविदास जी अचंभे रह गए परंतु रविदास जी में बचपन से ही अलौकिक शक्तियों का वास था और जब वह यह बात सुनकर अपने मित्र के पास पहुंचे और उनसे कहा कि मित्र उठो यह समय सोने का नहीं है चलो मेरे साथ खेलो।
बस इतना सुनते ही उनका मरा हुआ दोस्त उठ खड़ा हुआ और यह सब देख वहां खड़े सभी लोग हक्के बक्के रह गए।
संत रविदास जी का भेदभाव पर मुहतोड जवाब:
उनके अनुसार भगवान ने इंसान को बनाया है इंसान ने भगवान को नहीं। इसका तात्पर्य यह है कि भगवान द्वारा बनाए गए इंसानों में भेदभाव कैसे हो सकता है? सभी इंसान एक समान है।
दूसरों की क्या कहें? उनकी जाति वाले भी उन्हें आगे बढ़ने से रोकते थे। और अक्सर उन्हें यह कहा जाता था कि तिलक, गेरुए कपड़े और जनेऊ केवल ब्रह्मण और ऊंची जाति वाले लोग पहन सकते हैं हम शुद्र लोग नहीं।
परंतु रविदास जी ने जब इन सभी की बातों का खंडन करते हुए, तिलक, जनेऊ और धोती पहनी तो ब्राह्मणों ने उनके खिलाफ राजा से शिकायत कर दी और राजा ने जब उन्हें सभा में बुलाया तो रविदास जी ने बड़े प्यार से उत्तर दिया कि 'शूद्र में भी वही लाल रक्त, ह्रदय और दूसरों की तरह ही समान अधिकार है'।
ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने भरी सभा में सबके सम्मुख अपनी छाती चीरकर चारों युगों सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग की तरह ही उनके लिए 4 जनेऊ बना दिए जो सोना, चांदी, तांबा, और कपास से बने थे।
यह देख सभा में शामिल सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए और शर्मसार होकर उनके पैरो को छूकर माफी मांगी और उन्हें सम्मानित किया।
इस पर रविदास जी ने उन्हें माफ करते हुए कहा कि जनेऊ पहनने से कोई किसी को भगवान नहीं मिल जाता और अपना जनेऊ राजा को दे दिया जिसके बाद उन्होंने अपने जीवन काल में ना ही जनेऊ पहना और ना तिलक लगाया।
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मन चंगा तो कठौती में गंगा की कहानी (Story)
एक बार की बात है जब संत रविदास जी के एक पड़ोसी मित्र ने उनसे गंगा स्नान पर चलने को कहा, परंतु उनके पास अधिक कार्य के कारण समय ना होने पर उन्होंने अपने मित्र को एक सुपारी देते हुए कहा कि यह सुपारी आप मेरी तरफ से गंगा मैया को अर्पित कर दें।
जब वह पड़ोसी मित्र गंगा स्नान के दौरान संत रविदास जी के नाम पर मां गंगा को वह सुपारी अर्पित करता है तो उन्हें एक कंगन मिलता है। कंगन पाकर वह लालच में आ जाता है और उस कंगन को राजा को देकर बदले में इनाम ले लेता है।
राजा उस कंगन को जब रानी को भेट में देते हैं तो रानी को वह कंगन बहुत पसंद आता है और रानी, राजा से इसके दूसरे जोड़े की मांग करती है, जिस पर राजा उस व्यक्ति को दुबारा बुलवाता है जिसने उन्हें कंगन दिया था।
दूसरा कंगन मांगने पर व्यक्ति परेशान होकर मदद के लिए रविदास जी से मिलता है और सभी सच्चाई बताते हुए अपने लालच करने पर शर्मिंदा होकर उनसे माफी भी मांगता है।
अपने पड़ोसी मित्र को परेशान देख रविदास जी उसे माफ कर देते हैं और पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से माता गंगा का ध्यान करते हुए अपनी कठौती में हाथ डालकर दूसरा कंगन भी निकाल देते हैं।
यह देख उनका पड़ोसी मित्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहता और वह रविदास जी से इस चमत्कार के पीछे का राज पूछता है तो रविदास जी कहते हैं कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'।
अंतिम शब्द
संत शिरोमणि कवि रविदास जी से हम सभी एकाग्रता, सहनशीलता, कार्य प्रियता, लक्ष्य प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करना, कार्यों को लगन, ईमानदारी और सच्चाई तथा भगवान के प्रति ध्यान लगाना और कई अन्य अच्छी बाते सीख सकते हैं।
इस लेख से आप संत रविदास जी के बारे में पूरी तरह से वाकिफ़ ही गए होंगे और रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti 2021) के विषय में भी जान गए हैं।
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आप सभी को हैक्सीट्रिक की ओर से रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।