संत रविदास जयंती 2024: जीवन परिचय और कहानी

Sant Ravidas Jayanti 2024: हर साल माघी पूर्णिमा को मनाई जाने वाली गुरु रविदास जी की जयंती इस साल 24 फरवरी को शनिवार के दिन मनाई जा रही है।

Sant Ravidas Jayanti 2024: जानिए कब हुआ था गुरु रविदास का जन्म?

हर साल माघ माह की पूर्णिमा तिथि को संत रविदास जी की जयंती पूरे भारतवर्ष में बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ मनायी जाती है। वर्ष 2024 में 24 फरवरी की तारीख़ को शनिवार के दिन उनकी 647वीं जन्म जयंती मनाई जा रही है। रविदास जी का जन्म 1376 ईस्वी में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ बताया जाता है।

संत शिरोमणि सतगुरु श्री रविदास जी महाराज भारत के महान दार्शनिक, संत, गुरु, कवि, उपासक और समाज सुधारक थे जिन्होंने बड़े ही प्रभावी तरीके से ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा‘ जैसे अपने शब्दों पर लोगों को पुनः विचार करने पर मजबूर कर दिया। यह आज भी एक कहावत के तौर पर लोगों की जुबान पर आ ही जाती है।

Sant Guru Ravidas Jayanti 2023 In Hindi
Sant Guru Ravidas Jayanti 2023 in Hindi
पूर्णिमा तिथि और रविदास जयंती २०२४
रविदास जयंती तिथि:24 फरवरी (शनिवार)
पूर्णिमा तिथि:24 फरवरी (शनिवार)
पूर्णिमा शुरू:23 फरवरी (शाम 03:36)
पूर्णिमा समापन:24 फरवरी (शाम 06:03)
अगली बार:12 फरवरी 2025

 

गुरु रविदास जयंती कब और क्यों मनाते है?

भारत के महान संत, कवि और भक्त, गुरु रविदास जी की जयंती हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ महीने की शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है उनका जन्म 1433 विक्रम संवत में माघी पूर्णिमा के दिन हुआ माना जाता है। भारत की एक बड़ी आबादी संत रविदास जी को भगवान के समान मानती और पूजती हैं।

जाति प्रथा के उन्मूलन हेतु प्रयासों और भक्ति आन्दोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के कारण रविदास जी पूज्यनीय है, और यह दिन लोगों को शांति, सच्चाई और भाईचारे का संदेश देता है।

संत रैदास जी और उनकी शिक्षाओं को याद करने के मकसद से ही प्रत्येक वर्ष माघी पूर्णिमा को उनकी जन्म जयंती के अवसर पर सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी स्थित श्री गुरू रविदास जन्म स्थान मंदिर में भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें दुनियाभर से श्रद्धालु आते है।

इतना ही नहीं उनके उपासको द्वारा यह दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, इस दौरान सुबह नगर कीर्तन, सत्संग एवं लंगर आदि का आयोजन भी किया जाता है तथा उनके अनुयायी इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करते है।

 

संत रविदास जी कौन थे? (Sant Ravidas Biography in Hindi)

संत शिरोमणि रविदास एक महान दार्शनिक, कवि, महान संत, भगवान के उपासक और भारत के महान समाज सुधारकों में से एक थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास स्थित सीर गोवर्धन गांव में माघ की पूर्णिमा को संवत 1433 में हुआ उन्हें ‘रैदास‘ नाम से भी जाना जाता है। और इनका जन्म स्थान ‘श्री गुरु रविदास जन्म अस्थान‘ के नाम से प्रसिद्ध है।


हालांकि उनके जन्म को लेकर सभी लोगों की अपनी अलग राय हैं कुछ लोगों के अनुसार आपका जन्म 1376-77 के दौरान हुआ तो वही कुछ कागजों में उल्लेख है की रविदास जी ने अपना जीवन 1450 से 1520 के बीच पृथ्वी पर बिताया।

 

माता-पिता और व्यावसायिक जीवन

संत रविदास जी के पिता का नाम ‘संतोख दास‘ (रग्घु) और माता जी का नाम ‘कर्माबाई‘ (कलसा) था। चर्मकार कुल से होने के कारण उनके पिता चमड़े के जूते बनाने और मरम्मत करने का काम किया करते थे, और रविदास भी इस व्यवसाय में अपने पिता का हाथ बटाया करते थे।

हालांकि वह साधु-संतों और फकीरों को नंगे पांव देख अक्सर उन्हें मुफ्त में जूते चप्पल दे दिया करते थे, जिससे नाराज होकर उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया। घर से निकाले जाने पर उन्होंने एक कुटिया बनाई और जूते चप्पल की मरम्मत का काम शुरू किया।

इससे होने वाली आमदनी से वह अपना गुजर-बसर करने लगे और साधु संतों की संगत में अपना जीवन बिताने लगे। अच्छे व्यवहार और इनके अंदर समाए ज्ञान के कारण लोग इनके आसपास रहने लगे।

 

सामाजिक और वैवाहिक जीवन:

कथित तौर पर संत रविदास जी छोटी जाति से संबंध रखते थे जिसके कारण समाज में उनके साथ उस समय काफी भेदभाव किया जाता था। उनके साथ लोग जाति, धर्म और रंग के आधार पर भेदभाव करते थे। परंतु कुछ लोग उन्हें भगवान द्वारा भेजे गए ‘धर्म रक्षक‘ के रूप भी मानते थे।

रविदास जी का विवाह ‘लोना‘ नामक कन्या से हुआ। इनकी दो संताने हुई, पुत्र का नाम ‘विजय दास‘ था और पुत्री का नाम ‘रविदासिनी‘ था।

 

संत शिरोमणि रविदास जी के गुरू कौन थे?

संत रविदास जी के गुरु ‘पंडित श्री शारदानंद जी‘ थे, जिनसे उन्होंने बचपन से ही शिक्षा लेना आरंभ कर दिया था। उन्हें ऊंच-नीच भेदभाव के कारण पाठशाला में पढ़ने नहीं दिया गया था, जिसके बाद पंडित शारदानंद जी ने रविदास जी को व्यक्तिगत तौर पर पढ़ाना आरंभ किया।

रविदास जी शुरू से ही काफी होनहार और प्रतिभाशाली थे। उनके गुरु शारदानंद जी ने शुरू से ही उनमें एक अच्छा अध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक बनने की झलक देख ली थी।

कई स्थानों पर यह उल्लेख मिलता है कि स्वामी रामानंद जी ही संत रविदास और उनके गुरूभाई संत कबीर के गुरू थे, परन्तु इस बात का कोई आधिकारिक प्रमाण नही है की रामानंद ही उनके गुरू थे। कुछ जगहों पर पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब जी को उनका गुरु तो कुछ लोग गुरुनानक देव जी को रैदास जी का गुरु बताते हैं।

बताया तो यह भी जाता है कि श्री कृष्ण की अन्नय भक्त मीराबाई जब स्वामी रामानंद जी के पास उनकी शिष्या बनने गयी तो उन्होंने उन्हें रविदास जी के पास जाने को कहा। जिसके बाद रविदास जी ने मीराबाई को शिष्या के रूप में स्वीकार कर लिया और उनके गुरू बने।

 

 

रविदास जी की मृत्यु कब और कैसे हुई?

रविदास जी की मृत्यु का षड्यंत्र उनके दिन-प्रतिदिन बढ़ते अनुयायियों और भगवान के प्रति उनके प्रेम सद्भावना, मानवता और सच्चाई से जलने वाले कुछ ब्राह्मणों ने रचा। बताया जाता है कि रविदास जी के विरोधियों द्वारा एक सभा का आयोजन किया गया, और उस सभा में रविदास जी को भी बुलाया गया।

रविदास जी इन ब्राह्मणों की चाल से अच्छी तरह वाकिफ थे। जिससे वह तो बच जाते हैं लेकिन गलती से उनके मित्र ‘भला नाथ‘ को मार दिया गया। गुरुजी के उपासको और अनुयायियों की माने तो रविदास जी ने अपने 120-126 वर्ष के शरीर को 1540 AD में वाराणसी में ही प्राकृतिक रूप से त्याग दिया और अपनी अंतिम सांस ली।


संत शिरोमणि कवि रविदास जी से हम सभी एकाग्रता, सहनशीलता, कार्य प्रियता, लक्ष्य प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करना, कार्यों को लगन, ईमानदारी और सच्चाई तथा भगवान के प्रति ध्यान लगाना और कई अन्य अच्छी बाते सीख सकते हैं।

 

संत गुरु रविदास जी के योगदान

श्री रविदास जी 15वीं शताब्दी के महान संत, कवि और ईश्वर के भक्त थे, उन्होंने मीरा बाई जैसी कृष्ण भक्त और सिकंदर लोधी जैसे शासकों और करोडो लोगों का उद्धार किया।

रविदास जी ने जातिवादी और अध्यात्मिकता वादी विचारों के खिलाफ महत्वपूर्ण कार्य किए और सभी भेदभावों का डटकर मुकाबला किया। वे अक्सर लोगों को यह समझाया करते थे कि ‘इंसान जाति, धर्म या भगवान पर विश्वास के आधार पर नहीं जाना जाता, इंसान केवल अपने कर्मों से ही दुनिया में पहचाना जाता है‘।

उनके अनुसार ‘भगवान ने इंसान को बनाया है इंसान ने भगवान को नहीं‘। इसका तात्पर्य यह है कि भगवान द्वारा बनाए गए इंसानों में भेदभाव कैसे हो सकता है? सभी इंसान एक समान है।

सिक्खों के पवित्र धर्म ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब‘ में रविदास जी के करीब 40 पद सम्मिलित किए गए हैं।

 

भेदभाव पर मुहतोड जवाब

दूसरों की क्या कहें? उनकी जाति वाले भी उन्हें आगे बढ़ने से रोकते थे और अक्सर उन्हें यह कहा जाता था, कि तिलक, गेरुए कपड़े और जनेऊ केवल ब्रह्मण और ऊंची जाति वाले लोग पहन सकते हैं हम शुद्र लोग नहीं।

परंतु रविदास जी ने जब इन सभी की बातों का खंडन करते हुए, तिलक, जनेऊ और धोती पहनी तो ब्राह्मणों ने उनके खिलाफ राजा से शिकायत कर दी और राजा ने जब उन्हें सभा में बुलाया तो रविदास जी ने बड़े प्यार से उत्तर दिया कि ‘शूद्र में भी वही लाल रक्त, ह्रदय और दूसरों की तरह ही समान अधिकार है‘।

ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने भरी सभा में सबके सम्मुख अपनी ‘छाती चीरकर चारों युगों‘ सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग की तरह ही उनके लिए 4 जनेऊ बना दिए जो सोना, चांदी, तांबा, और कपास से बने थे।

यह देख सभा में शामिल सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए और शर्मसार होकर उनके पैरो को छूकर माफी मांगी और उन्हें सम्मानित किया। इस पर रविदास जी ने उन्हें माफ करते हुए कहा कि ‘जनेऊ पहनने से किसी को भगवान नहीं मिल जाता‘ और अपना जनेऊ राजा को दे दिया जिसके बाद उन्होंने अपने जीवन काल में ना ही जनेऊ पहना और ना तिलक लगाया।

 

 

संत रविदास जी की चमत्कारिक कथा (Guru Ravidas Story in Hindi)

रविदास जी और उनके गुरु शारदा नंद जी के बेटे में काफी अच्छी मित्रता थी एक बार की बात है जब दोनों लुका छुपी का खेल खेल रहे थे तो खेलते-खेलते रात हो गई। और दोनों ने अगले दिन पुनः इस खेल को जारी रखने का फैसला किया और सोने चले गए।

जब अगले दिन जब रैदास को अपने मित्र के साथ खेलने जाना था तो खबर मिली कि उनके दोस्त का देहांत हो गया है। उनमें बचपन से ही अलौकिक शक्तियों का वास था लेकिन मित्र की अचानक मृत्यु की बात सुनकर वे अचंभे रह गए और अपने मित्र के पास पहुंचकर उससे बस इतना कहा मित्र उठो यह समय सोने का नहीं है चलो मेरे साथ खेलो।

यह सुनते ही उनका मरा हुआ दोस्त उठ खड़ा हुआ और यह सब देख वहां खड़े सभी लोग हक्के बक्के रह गए।

 

मन चंगा तो कठौती में गंगा की कहानी (Story)

एक बार की बात है जब रविदास जी के एक पड़ोसी मित्र ने उनसे गंगा स्नान पर चलने को कहा, परंतु अधिक कार्य और समय ना होने के कारण उन्होंने अपने मित्र को एक सुपारी देते हुए कहा कि ‘यह सुपारी आप मेरी तरफ से गंगा मैया को अर्पित कर दें‘।

जब वह पड़ोसी मित्र गंगा स्नान के दौरान संत रविदास जी के नाम पर मां गंगा को वह सुपारी अर्पित करता है तो उन्हें एक कंगन मिलता है। कंगन पाकर वह लालच में आ जाता है और उस कंगन को राजा को देकर बदले में इनाम ले लेता है।

राजा उस कंगन को जब रानी को भेट में देते हैं तो रानी को वह कंगन बहुत पसंद आता है और रानी, राजा से इसके दूसरे जोड़े की मांग करती है। दूसरा कंगन मांगने पर व्यक्ति परेशान होकर मदद के लिए रविदास जी से मिलता है और सभी सच्चाई बताते हुए अपने लालच करने पर शर्मिंदा होकर उनसे माफी भी मांगता है।

अपने पड़ोसी मित्र को परेशान देख रविदास जी उसे माफ कर देते हैं और पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से माता गंगा का ध्यान करते हुए अपनी कठौती में हाथ डालकर दूसरा कंगन निकाल देते हैं।

यह देख उनका पड़ोसी मित्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहता और वह रविदास जी से इस चमत्कार के पीछे का राज पूछता है तो रविदास जी कहते हैं कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा‘।