विश्व रंगमंच दिवस 2025: थिएटर डे का उद्देश्य, महत्व और संदेश

विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना सन 1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट द्वारा की गई थी तभी से हर साल 27 मार्च को World Theatre Day मनाया जाता है। आइए अब आपको इसकी थीम, इतिहास और महत्व के बारे में विस्तार से बताते है।

विश्व थिएटर दिवस कब मनाया जाता है?

विश्व रंगमंच दिवस 2025: इस साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 27 मार्च 2025 को 63वां विश्व थिएटर दिवस मनाया जा रहा है, जिसका मुख्य उत्सव केंद्रों और आईटीआई के सामान्य सचिवालय द्वारा ऑनलाइन किया गया। इस बार का संदेश मिस्र की ‘सामिहा अयूब‘ ने लिखा है, वे इजिप्ट की एक बेहतरीन अदाकारा है।

भारत फिल्मों का देश है जहाँ हर कोई फ़िल्मी है। यहाँ हर हफ्ते करीबन दो-तीन बॉलीवुड फिल्में तथा क्षेत्रीय भाषाओं में भी कई फिल्मे रिलीज हुआ करती है, लेकिन अब वेबसीरीज, टीवी शोज और OTT प्लेटफार्म ने सिनेमा कारोबार को बड़ा झटका दिया है।

विश्व रंगमंच दिवस 2025 - 27 मार्च 2025
विश्व रंगमंच दिवस 2025 – 27 मार्च 2025
वर्ल्ड थिएटर डे के बारे में
नामविश्व रंगमंच दिवस
तारीख़27 मार्च
स्थापनावर्ष 1961 में (इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट ITI द्वारा)
पहली बार27 मार्च 1962
उद्देश्यथिएटर कला के महत्व को बढ़ाना

 

विश्व रंगमंच दिवस की शुरूआत कब और कैसे हुई? (इतिहास)

हर साल 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है, इसकी स्थापना वर्ष 1961 में अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (ITI) द्वारा की गई थी। इसे मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को थिएटर के मूल्यों और महत्व बताना तथा दुनिया भर में रंगमंच को बढ़ावा देना है।

इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट (ITI): दुनिया का सबसे बड़ा प्रदर्शन कला संगठन ‘अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (ITI)’ है, इसकी स्थापना नृत्य विशेषज्ञों और यूनेस्को द्वारा साल 1948 में की गई थी। आईटीआई का मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में स्थित है। दुनिया भर में आईटीआई के 85 से अधिक केंद्र हैं।

World Theatre Day Hindi Image
World Theatre Day Hindi Image

रंगमंच दो शब्दों के मेल से बना है रंग और मंच, यानि कि ऐसा मंच जिस पर विभिन्न रंगों को लोगों के बीच प्रदर्शित या पेश किया जा सके। पश्चिमी देशों में या अंग्रेजी में इसे Theater (थियेटर) शब्द से संबोधित किया जाता है।

 

विश्व थिएटर दिवस क्यों मनाया जाता है? (उद्देश्य)

विश्व थिएटर दिवस का उद्देश्य विश्वभर के लोगों को रंगमंच संस्कृति के विषय में बताना उसके विचारों के महत्व को समझाना और इसके प्रति लोगों में दिलचस्पी पैदा करना तथा इससे जुड़े लोगों को सम्मानित करना है।

इसके अलावा कुछ अन्य मकसद है:

  • दुनियाभर में अपने सभी रूपों में रंगमंच को बढ़ावा देना।
  • लोगों को थिएटर के मूल्यों से अवगत कराना।
  • खुद के लिए सभी रूपों में रंगमंच का आनंद लेना।
  • रंगमंच के आनंद को दूसरों के साथ बाँटना, आदि।

 

World Theatre Day कैसे मनाते है? (Theme/Message)

विश्व रंगमंच दिवस के दिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा, थिएटर पेशेवर, थिएटर प्रेमी, थिएटर विश्वविद्यालय, अकादमियां और स्कूल भी इसे मनाते हैं।

इस दिन लोगों को रंगमंच के विषय और संस्कृति के बारे में प्रेरित करने और अवगत कराने के लिए इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट द्वारा थिएटर से संबंधित एक सम्मानित कलाकार को भी बुलाया जाता है जो वर्ल्ड थिएटर डे के लिए आधिकारिक सन्देश (मैसेज) जारी करता है।

विश्व रंगमंच दिवस 2024 के संदेश की लेखक साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मशहूर नॉर्वेजियन लेखक और नाटककार ‘जॉन फॉस्से‘ हैं।

सन् 1962 में पहला अन्तर्राष्ट्रीय सन्देश फ्रांस के जीन काक्टे (Jean Cocteau) ने दिया, तथा 2002 में, भारत के गिरीश कर्नाड को यह मौका मिला। यह मैसेज 50 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद किया जाता है।

 

भारत की पहली नाट्यशाला और रंगमंच का इतिहास

बताया जाता है कि भारत के महाकवि कालिदास जी ने भारत की पहली नाट्यशाला में ही ‘मेघदूत‘ की रचना की थी। भारत की पहली नाट्यशाला अंबिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्थित है, इसका निर्माण महाकवि कालिदास जी ने ही किया था।

भारत में रंगमंच का इतिहास आज का नहीं बल्कि सहस्त्रों वर्ष पुराना है आप इसके प्राचीनता को कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि पुराणों में भी इसका उल्लेख यम, यामी और उर्वशी के रूप में देखने को मिलता है।

इनके संवादों से ही प्रेरणा लेकर लोगों ने नाटकों की रचना की जिसके बाद से नाट्यकला का विकास निश्चित हो सका तथा भारतीय नाट्यकला को शास्त्रीय रूप देने का कार्य भरतमुनि ने किया।

 

 

हमारे जीवन में थिएटर का महत्व

आज थिएटर दुनिया के तमाम रहस्यों और घटनाओं को हमारे सामने लेकर आया है जिनमें कई डॉक्युमेंट्रीज, वेबसीरीज एवं फिल्मे शामिल है, यह सच्ची घटनाओं को रंगमंच के जरिए पुनः जीवित करने का बेहतरीन जरिया है। जो इसके महत्व को बढ़ाने का काम कर रहा है।

बीते सालों में थिएटर की एक अलग ही पहचान बनी है लोग आज इसका बड़ा सम्मान करते हैं।

आज भारत में भी साइंस फिक्शन पर बनी मूवीस की भरमार है साथ ही कई फिल्में विश्व स्तर पर भारत को गौरवान्वित कर रही है, तो वहीं 1957 में मदर इंडिया, 1988 में सलाम बोम्बे और 2001 में लगान फिल्म ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई थी।

भारत और दुनियाभर में फैले कोरोना वायरस संकट के दौरान फिल्मजगत और थिएटर से जुड़े लोगों ने भी इस महामारी से निपटने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

 

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