सौर पैनल की जानकारी: कैसे बनता है, इसके प्रकार और इस्तेमाल? (Solar Panel Information in Hindi)
आज के आधुनिक युग में ऊर्जा (बिजली) की मांग काफी तेजी से बढ़ रही है, और अब प्राकृतिक ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाना बेहद आवश्यक होता जा रहा है। ऐसे में सूर्य की किरणों को विद्युत में बदलने वाला सोलर पैनल एक अच्छा विकल्प हो सकता है, इस लेख में हम सोलर पैनल के बारे में जानकारी हासिल करेंगे और इसकी कार्यप्रणाली अथार्त सोलर पैनल कैसे काम करता है? इसके प्रकार और इससे मिलने वाले लाभ तथा इस्तेमाल पर भी प्रकाश डालेंगे।
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री सोलर रूफटॉप योजना के तहत भारत के विभिन्न राज्यों में सौर पैनल लगवाने पर 20% से 40% की सब्सिडी दी जा रही है। और आप भी इसके लिए आवेदन कर कई सालों तक मुफ्त बिजली पा सकते है, तो आइए अब Solar Panel Information in Hindi के बारें में जानते है।
विषय सूची
सोलर पैनल किसे कहते है? यह कैसे बनता है? (Solar Panel in Hindi)
सौर पैनल, सूर्य के प्रकाश को विद्युत धारा में बदलने वाला एक उपकरण है, यह छोटे-छोटे सौर सेलों से मिलकर बना होता है, जिसे फोटोवॉल्टिक सेल (PV Cells) कहते हैं। सूर्य की किरणें (फॉटॉन) जब इन फोटोवॉल्टिक सेल्स पर पड़ती हैं, तो यह इलेक्ट्रॉन उत्पन्न करती हैं। ये इलेक्ट्रॉन एक सर्किट के माध्यम से प्रवाहित होते हैं और विद्युत उत्पादन करते हैं।
हालांकि सौर पैनल डायरेक्ट करंट (DC) बनाता है, जिसे बैटरी में स्टोर किया जाता है और घरेलू इस्तेमाल लायक बनाने के लिए एक इन्वर्टर की मदद से अल्टरनेटिव करंट (AC) में परिवर्तित किया जाता है।
Solar Panel System कैसे बनता है?
एक सोलर सिस्टम, सौर पैनल, इनवर्टर और बैटरी को तार के जरिए सही क्रम में आपस में जोड़े जाने के बाद बनता है। यह मुख्यतः दो तरह के होते हैं,
1. ऑन ग्रिड सोलर सिस्टम (On Grid Solar System) और
2. ऑफ ग्रिड सोलर सिस्टम (Off Grid Solar System)।
ऑन ग्रिड ऐसे सोलर सिस्टम होते हैं जो बिजली के खंभों से जुड़े होते हैं और इन्हें नेट मीटर की सहायता से चलाया जाता है। तो वही ऑफ ग्रिड सोलर सिस्टम ऐसे सोलर सिस्टम होते हैं जिन्हें चलाने के लिए अलग से बिजली की जरूरत नहीं पड़ती और यह स्वतंत्र होते हैं।
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Solar Panel कैसे काम करता है? (How it Works)
सोलर पैनल सिलिकॉन से बना होता हैं, जो एक अर्धचालक (semi-conductor) होता है। जिनमें से एक हिस्सा पॉजिटिव चार्ज और दूसरा हिस्सा नेगेटिव चार्ज होता है। जब सूर्य की किरणें (फोटोन) इन फोटोवॉल्टिक सेल पर पड़ती है, तो सेल द्वारा इस ऊर्जा को अवशोषित किया जाता है और इसके ऊपरी भाग में मौजूद इलेक्ट्रॉन सक्रिय हो जाते हैं और विद्युत क्षेत्र का निर्माण करते हैं जिसे फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट भी कहा जाता है।
सोलर पैनल के काम करने की प्रक्रिया काफी सरल और आसान है, बस आपको इसे सूर्य की रोशनी वाली दिशा में लगाना होता है और एक कनवर्टर की मदद से इसे घर में इस्तेमाल करने लायक बना दिया जाता है।
1. Solar Panel को सही दिशा में Set करे: सोलर पैनल को छत पर या किसी ऐसी जगह पर एकदम सटीक कोण पर लगाया जाता है जिससे इसकी गुणवत्ता अच्छी हो और यह अधिक से अधिक प्रकाश अवशोषित कर सके।
2. बैटरी: सोलर पैनल से बनने वाली बिजली को यदि आप रात के समय इस्तेमाल करना चाहते हैं तो उसके लिए बैटरी की आवश्यकता होती है जिसमें सोलर पैनल द्वारा उत्पन्न हुई बिजली को संग्रहित किया जा सकता हैं। और जब धूप न मिलने के कारण सोलर पैनल बिजली उत्पन्न करना बंद कर देते हैं तो इन बैटरियों मे संग्रहीत ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली उपकरणों को चलाने मे किया जाता हैं।
3. कनवर्टर: सोलर सेलों द्वारा बनायी गयी ऊर्जा को इस्तेमाल लायक बनाने के लिए इसे इनवर्टर की मदद से AC (Alternative Current) में बदला जाता है क्योंकि घर में और ज्यादातर जगहों पर AC (अल्टरनेटिव करंट) का इस्तेमाल किया जाता है।
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Solar Panels कितने प्रकार के होते हैं?
मार्केट में उपलब्धता के अनुसार सोलर पैनल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
- माइक्रोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल (Monocrystalline Solar Panel),
- पॉलीक्रिस्टलाइन सोलर पैनल (Polycrystalline Solar Panel),
- थिन फिल्म सोलर पैनल (Thin-film Solar Panel)।
माइक्रोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल (Monocrystalline Solar Panel):
माइक्रोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल शुद्ध सिलीकान के क्रिस्टल से बनी पतली परत होती है जो कीमत में काफी महंगी होती है। परंतु इसमें किसी भी प्रकार की खामी नहीं होती। यह सौर ऊर्जा को विद्युत धारा में परिवर्तित करने में काफी ज्यादा सक्षम होते हैं इसलिए इसका कम साइज भी अधिक फायदा देता है। इसके साथ ही यह मौसम खराब होने और बारिश के मौसम में भी काम करते हैं।
पॉलीक्रिस्टलाइन सोलर पैनल (Polycrystalline Solar Panel):
पॉलीक्रिस्टलाइन कई क्रिस्टलों से मिलकर बने होते हैं इसीलिए यह कीमत में भी माइक्रोक्रिस्टलाइन के मुकाबले काफी कम महंगे होते हैं। इसमें इस्तेमाल किए गए मल्टी क्रिस्टल की वजह से सौर ऊर्जा का सोखना कम हो जाता है और माइक्रोक्रिस्टलाइन के मुकाबले ऊर्जा कम उत्पन्न होती है।
यह कुछ खास परिस्थितियों जैसे बारिश या बादल होने पर उतनी अच्छी तरह काम नहीं कर पाते।
थिन फिल्म सोलर पैनल (Thin-film Solar Panel):
थिन फिल्म सौर पैनलों पर एक से ज्यादा सामग्रियों की पतली परते होती हैं जिसे कांच और अन्य धातुओं की एक पतली फिल्म चढ़ाकर बनाया जाता है। इन्हें Third generation solar cell और Low-cost photovoltaic cell के नाम से भी जाना जाता है।
Solar Panel के फायदे (Benefits)
- यह आपके हर महीने आने वाले भारी बिजली बिल से छुटकारा दिलाता है।
- इसका इस्तेमाल करना काफी आसान है आप इसे घर के लिए, रोड पर लगी लाइटों के लिए कर सकते हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों (अच्छी धूप वाले) में यह 24 घंटे बिजली देने का काम कर सकता है।
- यह कम धूप या बादल होने पर भी काम करता है।
- आप सोलर सिस्टम से उत्पन्न की गई बिजली को बेचकर पैसा कमा सकते हैं।
- बिजली के दूसरे संसाधनों के मुकाबले काफी किफायती है और लंबे समय तक चलती है।
- प्राकृतिक संसाधनों को उपयोग में लाने का सबसे बेहतरीन और भरोसेमंद तरीका है।
- यह वातावरण को प्रदुषित या इसे हानि नहीं पहुंचाता।
- बिना किसी भारी भरकम मशीनरी के ही इससे सौर ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।
- इसकी देखरेख एवं रखरखाव करना काफी आसान है।
- अपनी खपत एवं जरूरत के अनुसार यह बाजार में उपलब्ध है जिसे आसानी से खरीदा जा सकता हैं।
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सौर पैनल के नुकसान (Disadvantages)
वैसे तो सौर ऊर्जा के ज्यादातर फायदे ही होते हैं परंतु इसके कुछ नुकसान या कहें लिमिटेशंस भी है जो इस प्रकार हैं।
- ज्यादा कीमत: सोलर सिस्टम की शुरुआती कीमत काफी ज्यादा होती है। साथ ही बैटरी, इन्वर्टर, एवं इंस्टॉलेशन पर भी पैसा खर्चा करना पड़ता है।
- पर्याप्त जगह: यह काफी ज्यादा स्थान घेरता है। यदि आपको ज्यादा बिजली की जरूरत है तो आपके पास इसके लिए पर्याप्त स्थान होना चाहिए जहां सूर्य की किरणें पहुंच सकें।
- मौसम पर निर्भरता: साथ ही ज्यादा दिनों तक मौसम खराब होने या लगातार बारिश एवं बर्फबारी होने पर यह ठीक तरह से काम नहीं करता।
Solar Energy का इस्तेमाल कहां किया जा रहा है? (Uses)
सौर ऊर्जा/सोलर सिस्टम का उपयोग आज दुनिया भर के कई
- घरों में बिजली पहुंचाने के लिए,
- सड़कों पर लगी लाइट्स एवं लाइट सिगनल के लिए,
- अंतरिक्ष में कई मिशन को सफल बनाने के लिए,
- खाना बनाने या पानी गर्म करने के लिए (सोलर हीटर),
- और स्कूलों-कॉलेजों, हवाई अड्डों, अस्पतालों, बैंक एवं रेलवे स्टेशनों पर भी सामान्य रूप से होता है।
रात में सौर पैनल कैसे काम करते हैं?
सौर पैनल रात में ऊर्जा का उत्पादन नहीं करते हैं। इसमें फोटोवोल्टिक सेल्स से बिजली बनाने के लिए सूर्य के प्रकाश (Photon) का होना जरूरी है। हालांकि दिन में बैटरी को चार्ज करके इसका लाभ रात के समय भी लिया जा सकता हैं।
सौर पैनल का अविष्कार किसने किया था?
फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी ‘अलेक्जेंडर एडमंड बेकरेल‘ सोलर पैनल के अविष्कारक माने जाते हैं, बताया जाता है उन्होंने ही सबसे पहले सूर्य के प्रकाश से बिजली उत्पन्न करने का पता लगाया था। जिसके बाद अमेरिकी अविष्कारक चार्ल्स फिट्स में वर्ष 1981 में पहला कमर्शियल सोलर पैनल बनाया।
क्या बर्फीले इलाकों जैसे कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में सौर पैनल काम करते हैं?
हाँ! जहां भी सूरज की किरणें पहुंचती है वहां आसानी से सोलर सिस्टम की मदद से बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। परंतु इन इलाकों में बर्फबारी होने के कारण जब पैनल को पर्याप्त धूप नहीं मिल पाती तब यह बिजली उत्पन्न नहीं कर पाते हैं, ऐसे में यह साल में लगभग 200 से 250 दिन तक बिजली का उत्पादन कर सकते हैं, जिसे बैटरी की मदद से सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
अंतिम शब्द
उपरोक्त जानकारी से यह साफ़ हो जाता है कि आने वाले समय में इनका इस्तेमाल काफी तेजी से किया जायेगा और साथ ही कीमतों (Price) में भी कटौती पर भी काम होगा। जिससे यह सभी के लिए सस्ती और इस्तेमाल योग्य बनायीं जा सके।
आपको हमारी Solar System क्या है की यह संपूर्ण जानकारी अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करे, और यदि आपके मन में सौर पैनल या सिस्टम को लेकर कोई सवाल है तो आप अपने सवाल नीचे कमेंट करके पूँछ सकते हैं हम जल्द से जल्द आपके सवालों के जवाब देने का प्रयास करेंगे। साथ ही आप भी आज ही सोलर पैनल के लिए Online Apply करें और अपने बिजली का बिल कम करें।
और Subsidy की जानकारी के लिए संबंधित विभाग से संपर्क करें।