विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी (काले पानी की सज़ा और माफ़ीनामा)

Veer Savarkar की Jayanti पर जानिए उनका जीवन परिचय, इतिहास और भारत रत्न का विवाद

28 मई 2023 को विनायक दामोदर सावरकर जी की 140वीं जयंती मनाई जा रही है, उनका जन्म इसी दिन वर्ष 1883 में नासिक, महाराष्ट्र में हुआ था। वे भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, राजनेता, लेखक, वकील एवं हिंदुत्व दर्शन शास्त्री के प्रतिपादक थे।

हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर को जाता है। उनकी इस विचारधारा के कारण आजादी के बाद की सरकारों ने उन्हें वह महत्त्व नहीं दिया जिसके वे वास्तविक हकदार थे।

Vinayak Damodar Savarkar Jayanti
Vinayak Damodar Savarkar Jayanti

 

वीर सावरकर की जीवनी हिंदी में (Veer Savarkar Biography in Hindi)

28 मई 1883 को महाराष्ट्र (तत्कालीन बंबई) के नासिक प्रांत के निकट भागुर गांव में जन्मे विनायक दामोदर सावरकर के पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर तथा उनकी माता का नाम राधाबाई था।

जब वह केवल 9 साल के थे, तभी हैजे की महामारी के चलते उनकी मां का स्वर्गवास हो गया और इसके बाद ही प्लेग महामारी से उनके पिता भी स्वर्ग सिधार गए।

परिवार में उनके आलावा दो बड़े भाई गणेश (बाबा राव) तथा नारायण दामोदर सावरकर और एक बहन नैना बाई थी। माता-पिता के देहांत के बाद उनके बड़े भाई गणेश ने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधो पर उठा ली, जिसका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

घर में पैसे की कमी होने के बावजूद बड़े भाई ने उच्च शिक्षा के लिए सावरकर जी को प्रोत्साहित किया। उन्होंने शिवाजी हाई स्कूल (नासिक) से 1901 में अपनी दसवीं कक्षा पास की तथा कुछ कविताएं भी लिखी।

इस दौरान उन्होंने स्थानीय युवकों को संगठित करते हुए एक मित्र मेले का आयोजन किया तथा राष्ट्रीयता के प्रचार-प्रसार के साथ क्रांति की ज्वाला जगाई।

1901 में उनका विवाह यमुना बाई के साथ हुआ तथा उनके ससुर ने उनके विश्वविद्यालय की शिक्षा भार को संभाला और उन्हें पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से B.A. कराया। इस दौरान उन्होंने अपने भाई गणेश और नारायण के साथ मिलकर नासिक में एक गुप्त क्रांतिकारी समाज की स्थापना की, जिसे 1904 में, अभिनव भारत समिति (यंग इंडिया सोसाइटी) के नाम से जाना गया।

 

सावरकर को कालापानी की सजा क्यों हुई?

1910 में नासिक के कलेक्टर की हत्या में शामिल होने के आरोप में उन्हें जब इंग्लैंड से गिरफ्तार कर समुद्री रास्ते से लाया जा रहा था तब वे जहाज से कूद गए और 10-15 मिनट तक तैरने के बाद फ्रांस के तट पर पहुंचे और भागने की कोशिश की लेकिन कई लोगों ने मिलकर उन्हें पकड़ लिया।

उन पर कलेक्टर की हत्या के लिए अपने भाई को हथियार मुहैया कराने का आरोप था, जिसके बाद 7 अप्रैल 1911 को नासिक षडयंत्र काण्ड के तहत सावरकर जी को अंग्रेज अधिकारी (जिला कलेक्टर) जैकसन की हत्या के आरोप में काला पानी की सजा सुनाई गई और सेलुलर जेल भेज दिया गया।

सेल्यूलर जेल में अंग्रेजों के लिए सिर दर्द बन चुके क्रांतिकारियों को रखा जाता था, बताया जाता है कि वहाँ स्वतंत्रता सेनानी कैदियों को बिना भरपेट भोजन दिए उनसे कठिन परिश्रम कराया जाता था, तथा कोल्हू के बैल की जगह इस्तेमाल कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकलवाया जाता था।

इसके आलावा दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल करने का कार्य के दौरान पल भर भी रुकने पर कोड़ों एवं डण्डों से पीटा जाता था।

सावरकर जी 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक लगभग 9 साल 10 महीने पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे, और काला पानी की सज़ा काटी।

 

Vinayak Damodar Savarkar Apology Letter (माफीनामा):

बताया जाता है की उन्होने काला पानी की करीब 10 सालों की सज़ा के दौरान 6 बार अंग्रजों को माफ़ीनामा दिया। सावरकर को 25-25 सालों की 2 अलग-अलग सजाए सुनाई गयी थी, लेकिन 1920 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर अंग्रेजी हुकुमत ने ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उन्हे रिहा कर दिया।

बताया जाता है कि जेल में रहने वाले उनके दूसरे साथी उन्हें भूख हड़ताल करने के लिए प्रेरित किया करते थे, लेकिन उन्होंने अपनी आत्मकथा में यह लिखा है कि अगर उन्होंने जेल में हड़ताल की होती तो, उनसे भारत पत्र भेजने के अधिकार को भी छीन लिया जाता।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सावरकर जी का संताप करना अंग्रेजो के खिलाफ एक चाल थी ताकि उन्हें जेल से रिहा कर दिया जाए और वह फिर से सक्रिय हो सके। क्योंकि वे यह भली भांति जानते थे कि उम्रभर जेल में रहने से अच्छा भूमिगत रह कर काम करना है। उनका मानना था कि अगर वह जेल के बाहर रहेंगे तो, वह जो करना चाहें, वो कर सकेंगे।

 

सावरकर को ‘वीर’ की उपाधि किसने दी?

साल 1936 जब एक ब्यान के चलते कांग्रेस पार्टी में उनका विरोध हुआ तो मशहूर पत्रकार, शिक्षाविद, कवि और नाटककार पीके अत्रे ने पुणे में एक स्वागत कार्यक्रम (जिसमें हजारों लोग जुटे थे) के दौरान सावरकर को ‘स्वातंत्र्यवीर’ की उपाधि दी, जो बाद में केवल सिर्फ ‘वीर’ हो गयी और उनके नाम के साथ सदा-सदा के लिए जुड़ गयी।

कांग्रेसी कार्यकर्ताओं द्वारा Savarkar का विरोध और उन्हें काले झंडे दिखाने की धमकी पर पीके अत्रे ने सावरकर को निडर बताते हुए कहा था कि जो काला पानी की सजा से नहीं डरा वो इन काले झंडों से क्या डरेगा, और इस तरह से उन्हें यह उपाधि (Title) मिली।

 

वीर सावरकर जयंती स्पेशल: हिंदू राष्ट्रवादी प्रेम

हिंदू शब्द से बेहद लगाव रखने वाले विनायक दामोदर सावरकर 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी थे, उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में हिंदुओं, हिन्दी और हिंदुस्तान के लिए ही काम किया।

काला पानी की सज़ा काटकर आने के बाद उन्होंने हिंदुत्व – हू इज हिन्दू (Hindutva – Who is Hindu) नामक एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने पहली बार हिंदुत्व को एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर इस्तेमाल किया।

वीर सावरकर के हिंदुओ के प्रति इस लगाव को देखते हुए उन्हे 6 बार अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप मे चुना गया। 1937 में उन्हें हिंदू महासभा का अध्यक्ष चुना गया, और बाद में 1938 में हिंदू महासभा को राजनीतिक दल घोषित कर दिया गया।

हिंदुत्व शब्द किसने गढ़ा? हिंदुत्व (“Hinduness”) भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का प्रमुख रूप है। इस शब्द को 1923 में वीर सावरकर ने ही लोकप्रिय बनाया।

 

 

वीर सावरकर की मृत्यु कब और कैसे हुई? (Cause of death)

सावरकर जी की मौत 26 फ़रवरी 1966 को उपवास (Starvation) रखने से हुई, उन्होंने अपना जीवन समाप्त करने के लिए इच्छा मृत्यु को चुना था।

1 फरवरी 1966 से ही वे उन सभी चीजों का त्याग कर चुके थे जो उन्हें जिंदा रख सकती थीं इसमें दवाइयां, खाना और पानी जैसी सभी चीजें शामिल थी।


गांधी जी की हत्या की साज़िश का इलज़ाम:

दरअसल सावरकर पर उनके अंतिम दिनों में जो दाग लगा, उसने उनके कर्मो को अंधकार में झोक दिया। अंडमान निकोबार की जेल में रहते हुए उन्होंने पत्थर को कलम बना कर दीवार पर 6000 कविताएं लिखीं और कंठस्थ किया। लेकिन यह सब कुछ करने के बाद भी जब उनका नाम महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ा तो सब कुछ समाप्त हो गया।

यह साल 1948 की बात है जब नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या के छठे दिन सावरकर को गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के शक में मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया। हत्याकांड में उनके खिलाफ केस चला, लेकिन उन्हें फरवरी 1949 में बरी भी कर दिया गया था।

 

सावरकर और भारत रत्न का विवाद

आज से ही नहीं बल्कि कई लोगों द्वारा शुरू से ही उन्हें भारत रत्न देने की मांग की जा रही है। इससे पहले वर्ष 2000 में भी अटल बिहारी वाजपेई जी की सरकार में तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण के पास वीर सावरकर को भारत रत्न देने का प्रस्ताव भेजा गया था लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया था।

इसके बाद महाराष्ट्र में साल 2019 में होने वाले चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपना संकल्प पत्र पेश किया था, जिसमें स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न से नवाजे जाने का जिक्र किया गया था। इस बात को लेकर देशभर में सियासी घमासान जोरों पर था, इस फैसले का कुछ लोग समर्थन कर रहे थे तो वहीं कुछ लोग इसके विरोधी भी थे।

नोट: यह लेख इंटरनेट पर मौजूद विभिन्न सोर्सेज की मदद से लिखा गया है, HaxiTrick.com इसकी पुष्टि नहीं करता।