सावित्रीबाई फुले जयंती 2024: Savitribai Phule Biography (भाषण/निबंध)

Savitribai Phule Jayanti 2024: सावित्रीबाई फुले की 192वीं जयंती पर जानिए महिला शिक्षा एवं सशक्तिकरण कार्यों के बारे में

Savitribai Phule Jayanti 2024: हर साल 3 जनवरी को भारत की पहली महिला अध्यापक, समाज सुधारक और कवित्री सावित्रीबाई फुले की जयंती को बड़े ही आदर और सम्मान के साथ मनाया जाता है। इस साल 2024 में हम उनकी 193वीं जयंती मना रहे है। वे भारत के उन महान व्यक्तित्व वाले लोगों में से एक थी जिन्होंने देश की भलाई के लिए बेहद सराहनीय काम किया।

सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव फूले ने बाल विवाह, विधवा विवाह निषेध, एवं कन्या अशिक्षा जैसी भारत की कई कुरीतियों को खत्म करने का काम किया। उनके उच्च विचारों के चलते ही आज भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है इसके साथ ही समाज सुधारक के तौर पर उन्होंने ऊंच-नीच, ब्राह्मणवादी एवं जातिवादी समाज का भी अंत करने में अहम योगदान दिया है।

Savitribai Phule Jayanti - 3 January
Savitribai Phule Jayanti – 3 January

 

सावित्रीबाई फुले जयंती भाषण/निबंध (essay/speech on Savitribai phule in hindi)

आज 03 जनवरी 2024 को भारत की पहली महिला शिक्षिका, समाज सेविका और मराठी कवियित्री, क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले की 193वीं जयंती है, सावित्रीबाई फुले और उनके पति महात्मा ज्योतिबा फुले (Jyotiba Phule) का देश में किए गए समाज सुधार में बहुत बड़ा योगदान रहा है।

आज हम और आप जिस तरह से देश में महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करता देख रहे है ऐसी स्तिथि उन्नीसवीं सदी के दौर में नहीं थी, भारत में उस समय देश में महिलाओं की स्थिति काफी ज्यादा बदतर थीं।

उस समय भारत पुरुष प्रधान समाज हुआ करता था, तो वही दूसरी तरफ समाज में ऊँच-नीच, जात-पात, बाल विवाह, महिलाओं को शिक्षा से दूर रखना, सती प्रथा, आदि जैसी कई कुरीतियाँ अपने पाँव पसारे हुए थी।

उस समय के हाल को आप इस तरह समझ सकते है कि महिलाओं का घर की दहलीज लांघना और सिर से घूंघट उठाकर बात करना तक नामुमकिन सा था।

फलतः स्त्रियों का स्वाभिमान और आत्मविशवास पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था और वे इसी को अपनी किस्मत का लिखा मान चुकी थीं।

ऐसी ही विषम परिस्तिथि में सावित्रीबाई फुले (Savitribai phule) ने भी जन्म लिया और महिलाओं एवं दलितों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़ी हुई और एक समाज सुधारक के तौर पर उन्होंने देश को समाज में हो रहे शोषण से मुक्ति दिलाने हेतु पूर्ण प्रयास किया।


सावित्रीबाई फुले के विचार

सावित्रीबाई फुले जयंती Quotes in Hindi Photo
सावित्रीबाई फुले जयंती Quotes in Hindi Photo

 

क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले के बारे में

3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में जन्मी सावित्रीबाई फुले का पूरा नाम सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले था, वे भारत की पहली महिला शिक्षिका, प्राध्यापिका, समाज सुधारिका एवं मराठी की कवयित्री भी थीं। उन्होंने सन 1852 में लडकियों के लिए एक विद्यालय की स्थापना की जो देश का पहला कन्या विद्यालय (Girls School) था। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किए।

सावित्री बाई ने अंग्रेजों द्वारा दिए जा रहे अंग्रेजी शिक्षण को एक अवसर के रूप में लिया और जातिवादी, ब्राह्मणवादी, ऊंच-नीच के जाल में फंसे दलितों, शूद्रों एवं महिलाओं के लिए इसे एक अच्छा अवसर बताया।

उनका मानना था कि अंग्रेजी शिक्षा से महिलाओं और शूद्रों को गुलामी के जीवन से मुक्ति मिलेगी और उन्हें भी समाज में शिक्षित होने का अवसर मिलेगा।

वर्ष 1852 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले एवं ज्योतिबा फूले के महिला शिक्षा के क्षेत्र में दिए गए योगदानों के लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया।

यह भी पढ़े: देश की आयरन लेडी इंदिरा गाँधी के साहसिक कार्य

 

सावित्रीबाई फुले की जीवनी (Biography)

  • जन्म: सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र राज्य के छोटे से गांव ‘नायगांव‘ के एक दलित किसान परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम ‘खन्दोजी नेवसे‘ तथा माँ का नाम ‘लक्ष्मी‘ था।

  • विवाह (पति और बच्चे):
    सावित्रीबाई जब मात्र 9 वर्ष की थी तब उनका विवाह ‘ज्योतिबा (ज्योतिराव) फुले‘ से हुआ था, जो उस समय 12-13 साल के थे। वैसे तो उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी, लेकिन उन्होंने एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र ‘यशवंतराव‘ को गोद लिया था।

  • शिक्षा (Education):
    उनका जन्म एक ऐसे समाज में हुआ, जहाँ लडकियों का विद्यालय जाना वर्जित था, तथा कन्या शिक्षा को पाप माना जाता था। वही दूसरी ओर ज्योतिराव (Jyotirao Phule) भी अपनी जाति के कारण सातवीं कक्षा तक ही पढ़ पाए थे। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, उनके पति ज्योतिबा ने ही उन्हें घर पर शिक्षित किया।

    सावित्रीबाई ने जोतिराव के साथ अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद, उनकी आगे की शिक्षा भी ग्रहण की और उन्होंने ब्रिटिश शासन में दो शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी दाखिला लिया।


  • लडकियों के लिए स्कूल की शुरुआत:
    जब उन्होंने लडकियो के लिए स्कूल की शुरुआत कि तो ऐसे तुच्छ समाज में उनका स्कूल पढ़ाने जाना कठिनाईयों से भरा था।

    जब वे स्कूल पढाने जाती थी तो लोग उन्हें पत्थर मरते और उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर आदि फेंकते परंतु वह अपने पथ से कभी नहीं हटी, वे इससे लड़ने के लिए हमेशा से ही खुद को तैयार करके रखती थी।

    वे विद्यालय जाते समय अपने थैले में एक Extra साड़ी लेकर जाती थी और स्कूल पहुंचकर उस गन्दी साड़ी को बदल लिया करती थी।

 

सावित्रीबाई फुले का जन्म और मृत्यु कब हुई?

सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा में 3 जनवरी 1831 को हुआ और उनकी मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग नामक रोग से ग्रसित होने से हुई। उन्हें यह बिमारी इससे ग्रस्त एक बच्चे को अस्पताल ले जाने के दौरान लगी थी।

वर्ष 1890 में ज्योतिराव के निधन के बाद भी उन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय लोगों की सेवा में ही बिताया, वे और उनके बेटे यशवंतराव प्लेग महामारी के मरीज़ों की सेवा किया करते थे।


उन्होंने अपना पूरा जीवन देश और देश के लोगों की सेवा में बिता दिया, आज भारत की केंद्र एवं महाराष्ट्र सरकारों द्वारा उनके नाम पर कई पुरस्कारों की स्थापना की गई है और उनके एवं उनके पति ज्योतिबा के नाम से डाक टिकट भी जारी किया गया है।

 

 

सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले द्वारा किए गए सुधार कार्य और योगदान:

  • 1. सावित्रीबाई फुले ने भारत में पहला कन्या विद्यालय और किसान स्कूल की स्थापना की और देश की पहली महिला अध्यापिका एवं प्रिंसिपल बनी।

  • 2. फुले दम्पत्ति ने 1848 में पुणे में एक विद्यालय की स्थापना की, जिसमें केवल 9 छात्राएं थी। और एक साल में दोनों ने मिलकर 5 नये विद्यालय खोलें।

  • 3. उन्होंने विधवा विवाह करवाने, छुआछूत मिटाने, महिलाओं की मुक्ति और दलितों एवं शूद्रों को शिक्षित बनाने का काम किया।

  • 4. वर्ष 1854 में उन्होंने विधवा आश्रय स्थल खोला तथा बेसहारा स्त्रियों के रहने के लिए सस्थान की राह प्रशस्त की।

  • 5. वर्ष 1897 में सावित्रीबाई और उनके बेटे यशवंतराव ने मिलकर प्लेग रोगियों के लिए एक अस्पताल भी खोला, और मरीजों की देखभाल का भी काम किया।

  • 6. सावित्रीबाई और उनके पति ने मिलकर महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए काम किया।

 

सामाजिक मुश्किलें (कहानी)

आज से लगभग 161 साल पहले बालिकाओं के लिये स्कूल खोलने पर उन्हें पत्थर मारे गए, गालियाँ दी गयी और उन पर कीचड़, गोबर आदि फैका गया। लेकिन सावित्रीबाई ने जैसे अपने जीवन का मिशन पहले से ही तय किया हुआ था, उन्होंने अपने जीवन में कई उद्देश्यों को पूरा किया, वे मराठी की आदिकवियत्री भी थीं।

उस समय बालिकाओं का पढना-लिखना पाप माना जाता था, ऐसे में आप यह अनुमान लगा सकते है कि उस समय कन्याओं के लिए विद्यालय खोलना कितना मुश्किल काम रहा होगा।

लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी, ऐसे में सावित्रीबाई फुले उस दौर में न केवल खुद पढ़ीं, अपितु दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, जिसकी कल्पना कर पाना भी मुशकिल है।

 

सावित्रीबाई फुले किसकी पत्नी थी?

सावित्रीबाई फुले महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की पत्नी थी उनका बाल विवाह हुआ था। जब उनकी शादी 12-13 साल के ज्योतिराव फूले से हुई तब उनकी उम्र मात्र 9 वर्ष थी।

महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक तो थे ही साथ ही भारत के महान सामाजिक सुधारक भी माने जाते है।

 

भारत की प्रथम महिला शिक्षिका कौन थी?

सावित्रीबाई फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका एवं प्राध्यापिका थी, उन्होंने ही ज्योतिराव फूले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए पहला कन्या विद्यालय खुलवाया और लड़कियों को शिक्षित करना शुरू किया।

उन्होंने देश में महिला सशक्तिकरण की मिसाल कायम की इसलिए उन्हें भारतीय नारीवाद की जननी भी माना जाता है।

 

क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले की 193वीं जयंती पर हम उन्हें शत्-शत् नमन करते है।

👇 इस जानकारी को शेयर करें 👇

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *